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चरकसंहिता-भा० टी०।
__ अंकोटके गुण। श्लेष्मलंगुरुविष्टम्भिचांकोटफलमनिजित् ।
गुरूष्णमधुररूक्षकेशनंचशमीफलम् ॥ १५३ ॥ . अंकोटफल- कफकारक, भारी, विष्टम्भी एवम् क्षुधानाशक होताहै । ( अंकोट नाम ढेराका है)। शमीफल-भादी, गर्म, मधुर, शीतल एवम् केशोंको नष्ट करने. वाला होताहै। (कोई शमीफलका अर्थ सेमलक फल करतेहैं परन्तु शमी नाम जंडके वृक्षका है ) ॥ १५३ ॥
कंजेके गुण । विष्टम्भयतिकारशंपित्तश्लेष्माविरोधिच । आम्रातकंदन्तशठमम्लंसकरमर्दकम् ॥ १५४ ॥ रक्तपित्तकरंविद्यादैरावतकमेव . च । वातनंदीपनश्चैववाकिंकटुतिक्तकम् ॥ १५५॥ करंजफल-विष्टम्भकर्ता और पित्त,कफसे अविरोधी होताहै। पहाडी अम्बाडा, जंभीरा, करौंदा, ये सव अम्ल, रक्तपित्तकारक होतेहैं एवम् पहाड़ी खट्टे नींबुओंमें भी यही गुण होतेहैं । वार्ताकफल-वातनाशक, दीपन, कटु और तिक्त होताहै । (वार्ताकनाम बैंगनका है परन्तु यह वार्ताक अन्नफल विशेष है ) ॥१५॥१५५॥
पित्तपापडाका गुण । वातलंकफपित्तनविद्यात्पर्पटकीफलम् ।
पित्तश्लेष्मन्नमम्लञ्चवातिकञ्चाक्षिकीफलम् ॥१५६ ॥ पाखरका फल -कफ, पित्तनाशक होताहै । अच्छूका फल (हीहर) पित्त,कफनाशक, खट्टा एवम् वातकारक होताहै ॥ १५६ ॥
मधुराण्यविपाकीनिवातपित्तहराणिच ।
अश्वत्थोदुम्बरप्लक्षन्यग्रोधानांफलानिच ॥१५७॥ . पीपर, गूलर, पिलखन, बड इनके फल मधुर, देरमें परिपक्क होनेवाले तथा वातपित्त हरनेवाले होते हैं । १५७ ॥
भिलावेकी गुठलीके गुण । भल्लातकास्थ्यग्निसमंत्वङ्मांसंस्वादुशीतलम् ॥ १५८ ॥ पञ्चमःफलवगोंऽयमुक्तःप्रायोपयोगिकः ॥१५९ ॥ .
. इति फलवर्गः।