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सूत्रस्थान-अ० २७०
(३२९). ... मोरके मांसका गुण । दर्शनश्रोत्रमेधाग्निवयोवर्णस्वरायुषाम् ।
'बहींहिततमोबल्योवातनामांसशकलः ॥ १३ ॥ मोरका मांस-दृष्टि, कान, बुद्धि, अग्नि,अवस्था, वर्ण, स्वर, और आयु इनको हितकारी है तथा बलकारक, वातनाशक, मांसवर्द्धक एवम् वीर्यजनक है ॥ ६३ ॥
हसके मांसका गुण । गुरूष्णास्निग्धमधुराःस्वरवणबलप्रदाः।
बृंहणाःशुक्रलाश्चोक्ताहंसामारुतनाशनाः॥६॥ हंसका मांस- भारी, गर्म, स्निग्ध, मधुर, स्वर और वर्णप्रद, बलकारक, बृंहण, शुक्रजनक, वातनाशक, होता है । ६४ ॥
मुगक मांसका गण । स्निग्धाश्चोष्णाश्चवृष्याश्चबृहणाःस्वरबोधनाः ।
बल्याःपरंवातहराःस्वेदनाश्चरणायुधाः ।। ६५ ॥ मुर्गेका मांस-स्निग्ध, उष्ण, वृष्य, बृहण, स्वरकारक, बलवर्द्धक, वातनाशक एवम् स्वेदकारक होताहै ॥ ६ ॥
धन्वानूप मांसके गण। गुरूष्णमधुरोनातिधन्वानूपनिषेवणात् ।
तितिरिःसञ्जयेच्छीमंत्रीन्दोषाननिलोल्वणान् ॥ ६६ ॥ अनूपसंचारी जीवोंका मांस तथा जंगलीजीवोंका मांस न अधिक भारी, न अधिक गर्म और न आधक मधुर होताहै । तीतरका मांस वातप्रधान सन्निपातको जीतनेवाला है ।। ६६॥
कपिलके मांसका गुण । पित्तश्लेष्मविकारेषुसरक्तेषुकपिञ्जलाः ।
मन्दवातेषुशस्यन्तेशैत्यमाधुर्यलाघवात् ।। ६७ ॥ कपिजलका मांस-थोडे वायुवाले पित्त कफ विकार तथा रक्तविकारोंको जीतनेवाला है। क्योंकि यह शीतल, मधुर और हलका होताहै ॥ ६७ ॥
लवाके मांसका गुण । लावा कषायमधुरालघवोऽग्निविवर्द्धनाः। सन्निपातप्रशमनाःकटुकाश्चविपाकतः ॥६॥