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सूत्रस्थान अ० २७.
" (३२७) होगोपापुत्रःप्रियात्मजः ॥ ४९ ॥ लट्वालदृषकोबभ्रुर्वटहाडिण्डिमानकः । जटीदुन्दुभिवाक्कावलोहपृष्ठकुलिङ्गकाः ॥५०॥ कपोतशुकसारङ्गाश्चिरिटीकंकुयष्टिकाः।सारिकाकलविङ्कश्चच-' टकोऽङ्गारचूडकः। पारावतःपाण्डविकइत्युक्ताःप्रतुदाद्विजाः॥५१॥ शतपत्र,भंगराज,कोयष्टी, जीवजीवक, कैरात, कोकिल, अत्यूह, गोपापुत्र,मिया त्मज, लट्वा, लट्टिषक, नकुल, वटहा, डिंडिमानक, जटी,दुंदुभीवाक्, अवलोह,पृष्ठः कुलिंगक, कपोत, शुक, सारंग, चिरटी, कंकुयष्टी, सारिका, कलविक, अंगारचूडक, पारावत, पाण्डवीक इन सब पक्षियोंको प्रतुद कहते हैं तथा द्विज भी कहते.
इनके लक्षण । प्रसह्यभक्षयन्तीतिप्रसहास्तेनसंज्ञिताः॥ ५२ ॥भशयाबिलवासत्वादानूपानूपसंश्रयाताजलेनिवासाजलजाजलचर्याजलेचराःस्थलजाजाङ्गलाःप्रोक्तामृगाजाङ्गलचारिणः॥ ५३ ।। विकीर्यविष्किराश्चेतिप्रतुद्यप्रतुदाःस्मताः । योनिरष्टविधा । त्वेषांमांसानांपरिकीर्तिता ॥ ५४ ॥
जो जीव बलपूर्वक अपने भोजनकी सामग्रीको ग्रहण करके खाते हैं उन सवको प्रसह कहते हैं । जो पृथ्वीमें विल बनाकर रहतेहैं उनको बिलेशय कहते हैं । जलके समीप वास करनेवाले अनूपसंचारी कहेजातेहैं । जलमें रहनेवालोंको जलेशय कहते हैं, जलमें विचरनेवालोंको जलचर कहतेहैं। स्थलचर जीवोंको.जो जंगलमें रहतेहैं उनको जांगल कहतेहैं । चोंचसे बखेरकर अथवा पंजोंसे बखेरकर खानेवालोंको. विष्किर कहतेहैं । कीटं आदिकोंको पंजेसे दबाकर चोंचके साथ खानेवालोंको प्रतुद कहतेहैं इसप्रकार मांसोंकी आठ प्रकारकी योनि वर्णन है ॥ ५२॥ ५३ ॥५४ ।।
प्रसहादिके मांसका गुण। प्रसहाभूशयानूपवारिजावारिचारिणः । गुरूष्णस्निग्धमधुरा बलोपचयवर्द्धनाः ॥ ५५॥ वृष्याःपरंवातहरा कफपित्ताभि.
वर्द्धिनः। हिताव्यायामनित्यानांनरादीप्तानयश्चये ॥ ५६ ॥ __ इनमें प्रसह, बिलेशय, अनूपसंचारी, जलेशय और जलसंचारी जीवोंका मांस
१जीवोंकी श्रेणीमात्र सामान्यतासे कथन करदीहै । सामान्यतासे प्रायः मांस मनुष्योंको हानिकारक होते हैं और बहुतसें तो विशेष हानिकारक होनेसे सर्वथा अभक्ष्य हैं।