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________________ सूत्रस्थान-अ०.२६१ (३१५) जो द्रव्य गुणसे और अभ्याससे विरुद्ध हो वह औषध क्रियामें नहीं लेना चाहिये क्योंकि गुण, अभ्यास, संस्कार और प्रकृति से विरुद्ध पदार्थ विषके समान मनु ष्यको मारडालनेवाले होते हैं ॥ १३३ ॥ ऐरण्डसीसकासक्तंशिखिमांसंतथैवहि । विरुद्धवीर्य्यतोज्ञेयं वीर्य्यतःशीतलात्मकम्॥१३४॥ तत्संयोज्योष्णवीर्येणद्रव्ये णसहसेव्यते ।रकोष्ठस्यचात्यल्पमंदवीर्यमभेदनम्॥१३५॥ • मृदुकोष्ठस्यगुरुचभेदनीयंतथाबहु । एतत्कोष्ठविरुद्धन्तुविरुद्धं स्यादवस्थया॥१३६ ॥ श्रमव्यवायव्यायामसक्तस्यानिलकोपनम् । निद्रालसस्यालसस्यभोजनंश्लेष्मकोपनम्॥ १३७ ॥ एरंडके तेलमें मिला हुआ-मारका मांस संस्कारविरुद्ध होताहै।उष्णवीर्य द्रव्यके साथ शीतवीर्य द्रव्यको मिलाकर देना वीर्यविरुद्ध कहा जाताहै। क्रूरकोष्ठवालेको मन्दवीर्य अभेदनकर्ता पदार्थ एवम् मृदुकोष्ठवालेको भारी और भेदनकर्ता पदार्थ तथा बहुतसा पदार्थ कोष्ठविरुद्ध कहा जाताहै । श्रम, मैथुन और व्यायामसे थकेहुए मनु ष्यको वातकारक पदार्थ निद्रा और आलसवालेको कफकारक भोजन अवस्थाविरुद्ध कहा जाताहै ॥ १३४ ॥ १३५ ॥ १३६ ॥ १३७ ॥ यच्चानुत्सृज्यविण्मूत्रभुंक्तेयश्चानुभुक्षितः। वच्चकर्मविरुद्धंस्थाद्यच्चातिक्षुद्वशानुगः॥ १३८॥ जो मनुष्य मल, मूत्रके त्याग किये विना अथवा विना भूखके भोजन करताहै तथा अत्यन्त भूख लगने पर भोजन नहीं करताहै।उसको कर्मविरुद्ध कहतेहैं॥१३८॥ परहारविरुद्धन्तुवराहादीनिषेव्ययत् । सेवेतोष्णंघृतादींश्चपीत्वाशीतनिषेवते ॥ १३९॥ वाराह आदिका मांस खाकर गर्म पदार्थोंका सेवन करना और घृत आदि पदार्थोंको पीकर शीत पदार्थोंका सेवन करना भी आहारविरुद्ध कहा जाता है।॥ १३९॥ विरुद्धंपाकतश्चापिदुष्टदुर्दारुसाधितम् । अपक्वतण्डुलात्यर्थपक्कदग्धंचयद्भवेत् ॥ १४० ॥ · विषैली लकडियोंकी अग्निसे सिद्ध किया पदार्थ एवम् कच्चे, जले भुने चावल, आदिक पाकविरुद्ध कहे जातेहैं ॥ १४० ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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