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________________ सूत्रस्थान-अ० २६. (३०७) किसी पदार्थको मुखमें लेनेसे जो आस्वादन होताहै उसको रस कहतेहैं वह रसनांग्राह्य होनेसे भी रस कहा जाता है । जठराग्निसे परिपक्क होने पर जो प्रथम रसका परिणामभूत अन्य रस बनता है उसको परिपाक कहते हैं रसका परिपाक होनेपर जो कुछ वनताहै उसको वीर्य कहतेहैं ॥ ९१ ॥ प्रभावका लक्षण । रसवीर्यविपाकानांसामान्ययस्यलक्ष्यते। विशेषःकर्मणाश्चैवप्रभावस्तस्यचस्मृतः ॥ ९२॥ जिस द्रव्यके रसबीर्य, विपाकमें कोई विशेषता प्रतीत न हो किन्तु कर्ममें विशेषरूपसे विशेषता पाई जाय उसको प्रभाव कहतेहैं ।। ९२ ॥ कटुकःकटुकःपाकेवीर्योष्णश्चित्रकोमतः । तद्वदन्तीप्रभावात्तुविरेचयतिमानवम् ॥ ९३ ॥ जैसे चित्रक, रसमें कटु और पाकमें भी कटु तथा वीर्यमें भी उष्णवीर्य है ऐसे ही दंती (जमालगोटेकी जड) भी स्वाद, विपाक वीर्यमें उसके समान होतेहुए भी विरेचनका प्रभाव चित्रकसे अधिक रखतीहै ॥ ९३ ।। _ विषंविषघ्नमुक्तंयत्प्रभावस्तत्रकारणम् । ऊर्ध्वानुलोमनंयच्चतत्प्रभावप्रभावितम् ॥ ९४ ॥ विषको विष ही नष्ट करताहै यह जो कहावत है इसमें भी प्रभाव ही कारण होताहै । कुछ द्रव्य जिस प्रकार खायेजानेसे वमनादि अर्धविरेचन करतेहैं उसी प्रकार दूसरे द्रव्योंमें अधोविरेचनका प्रभाव देखने में आताहै ॥ ९४ ॥ मणीनांधारणीयानांकर्मयाद्विविधात्मकम् । तत्प्रभावकतंतेषांप्रभावोऽचिन्त्यइप्यते ॥९५ ।। माणे आदि धारण करनेके जो द्रव्य हैं उनमें भी अच्छे और बुरे दो प्रकारके प्रभाव पाये जातेहे । सो उनमें वह प्रभाव अचिंत्य है ॥ ९५ ॥ रसीयर्यादिका सिद्धान्त। किञ्चिद्रसेनकुरुतेकर्मवीर्येणचापरम् । द्रव्यंगुणेनपाकेनप्रभावेणचकिञ्चन ॥ ९६ ॥ रसविपाकस्तौवीयंप्रभावस्तानपोहति । गुणसाम्येरसादीनामितिनैसर्गिकंबलम् ॥ ९७ ॥ सम्यग्त्रिपाकवीर्याणिप्रभावश्चाप्युदाहृतः॥ ९८॥ .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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