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सूत्रस्थान - अ० २६.
( ३०५ )
अम्लात्कदुस्ततस्तिक्तोलघुत्वादुत्तमो मतः । केचिल्लघूनामवर - मिच्छंतिळवणंरसम् ॥ ८१ ॥ गौरवेलाघवेचैव सोऽवरस्तुभयोरपि । परञ्चातोविपाकानांलक्षणंसम्प्रवक्ष्यते ॥ ८२ ॥
अम्लरस से कटु और कटुसे तिक्त लघुतामें प्रधान होते हैं। कोई कहते हैं कि लवणरस लघुताके विषय में सबसे निकृष्ट होता है तथा अम्ल और लवण रसोंमें लवण रसकी गुरुतामें प्रधान है और लघुतामें कनिष्ठ है । अब इसके उपरान्त विपाकों के लक्षणों का वर्णन करते हैं ॥ ८१ ॥ ८२ ॥
विपाकका वर्णन | कटुतिक्तकषायाणां विपाकः प्रायशः कटुः ।
अम्लोऽम्लं पच्यते स्वादुमधुरं लवणस्तथा ॥ ८३ ॥
कटु, तिक्त और कषाय रसका प्रायः कटु विपाक होता है । अम्लरसका प्रायः अम्ल विपाक होताहै । मीठे और लवणरसका प्रायः मधुर विपाक होता है | इस प्रकार कटु, अम्ल और मधुर यह ३ प्रकारका द्रव्योंका विपाक होता है ॥ ८३ ॥ मधुरोलवणाम्लौ चस्निग्धभावास्त्रयोरसाः ।
वातमूत्रपुरीषाणां प्रायो मोक्षेसुखामताः ॥ ८४ ॥
मधुर, लवण और अम्ल यह तीनों रस स्निग्ध होनेसे वायु, मूत्र और मल इनको सुखपूर्वक निकालते हैं ॥ ८४ ॥
कटुतिक्तकषायास्तुरूक्षभावास्त्रयोरसाः ।
दुःखाविमोक्षेदृश्यन्तेवाताविण्मूत्ररेतसाम् ॥ ८५ ॥
कटु, तिक्त और कषाय यह तीन रस रूक्ष होनेसे वात, मूत्र, मल और शुक्रको सुखपूर्वक नहीं निकलने देते अर्थात् इनके निकलने में रुकावट डालते हैं ॥ ८५ ॥ शुक्रहाबद्धविण्मूत्रोविपाकोवातलः कटुः ।
मधुरःसृष्टविण्मूत्रोविपाकेकफशुक्रलः ॥ ८६ ॥
कटुरस - विपाक होने पर शुक्रको हरता है । मल मूत्रको वद्ध करता है । वायुकों उत्पन्न करता है । मधुररस - विपाक होने पर मल, मूत्रको निकालता है, कफ तथा वीर्यको उत्पन्न करता है ॥ ८६ ॥
पित्तकृत्सृष्टविण्मूत्रःपाकेऽम्लः शुक्रनाशनः ।
तेषां गुरुः स्यान्मधुरः कटुका लावतोऽन्यथा ॥ ८७ ॥
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