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________________ (२५८) चरकसंहिता-भा० टी०। स्थूलता चित्र ये सब नष्ट होतेहे और आग्ने चैतन्य होती हैं तथा स्मृति और बुद्धिकी वृद्धि होती है ॥१७॥ १८ ॥१९ ॥ २० ॥२१॥ व्यायामनित्योजीर्णाशीयवगोधूमभोजनः । सन्तर्पणकृतैदोषैर्मक्वास्थौल्याद्विमुच्यते ॥ २२ ॥ नित्य व्यायाम करनेवाला तथा उचित रीति पर भोजन करनेवाला मनुष्य जौ, गेहूँ भोजन करते हुए भी संतपणसे उत्पन्न हुए रोगोंसे तथा स्थूलतासे छूट जाताहै ॥ २२ ॥ उक्तसन्तर्पणोत्थानामपतर्पणमौषधम् । वक्ष्यन्तेसौषधाश्चोर्ध्वमपतर्पणजागदाः ॥ २३॥ इस प्रकार संतर्पणसे उत्पन्न हुए रोगोंकी औषधियां वर्णन करचुके हैं अवलंघ. नसे उत्पन्न हुए रोगोंकी औषधियां कहतेहैं ॥ २३ ॥ . __ अतर्पणजन्य रोगोंके नाम और चिकित्सा । देहोग्निवलवर्णीजःशुक्रमांसवलक्षयः।ज्वरःकासानुबन्धश्चपावशलमरोचकः॥ २४ ॥ श्रोत्रदौर्बल्यमुन्मादः प्रलापोहृदय व्यथा । विमूत्रसंग्रहःशूलंजघोरुत्रिकसंश्रयम् ॥ २५ ॥ पर्वास्थिसन्धिभेदश्चयेचान्येवातजागदाः । ऊववातादयः सर्वे जायन्तेतेऽपतर्पणात् ॥ २६ ॥ अत्यन्त लंघन करनेसे अथवा अनुचित रीति पर लंघन करनेसे शरीर,जठराग्नि वल, वर्ण, ओज, शुक्र, मांस और वलका क्षय होताह और ज्वर, खांसी इनका अनुबंध पार्थशूल, असाचे और श्रवणशक्तिकी दुर्वलता, उन्माद,चकवाद, हृदयमें पीडा, मल मूत्रका विंबंध, जंघा और ऊरु तथा त्रिकस्थानमें पीडा और पर्व, अस्थि, सन्धि इनमें भेदनकीसी पीडा, ऊर्ध्ववात आदिक वहुतसे रोग उत्पन्न होते हैं ॥ २४ ॥ २९ ॥ २६ ॥ तेपांसन्तर्पणंतज्ज्ञैः पुनराख्यातमौषधम् यत्तदात्वेसमर्थस्यादभ्यासेवातदिप्यते ॥ २७ ॥ सद्यःक्षीणोहिसयोवैतर्पणेनोपचीयता नसन्तर्पणाभ्यासाच्चिरक्षीणस्तुपुष्यति ॥ २८॥ देहाग्निदोपभैषज्यमात्राकालानुवर्तिना । कार्य्यमत्वरमाणेन भेषजंचिरदुर्घले ॥२९ ॥ हितामांसरसास्तस्मैपयांसिचघृता
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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