________________
(२१५)
सूत्रस्थान-अ०२३. त्रयोविंशोऽध्यायः।
.
अथातः सन्तर्पणीयमध्यायंव्याख्यास्याम इतिहस्साह भगवानात्रेयः।
अब हम संतर्पणीय नामके अध्यायको व्याख्या करतेहैं।ऐसा भगवान् आत्रेय एहनेलगे।
सन्तर्पणसे होनेवाले रोगोंके सकारण नाम । सन्तर्पयतियःस्निग्धैर्मधुरैर्गुरुपिच्छिलेः। नवान्नैर्नवमर्चेश्चमांसैश्चानूपवारिजैः॥१॥ गोरसैगौडिकैश्चान्नैःपिष्टकैश्चातिमात्रशः । चेष्टाद्वेषीदिवास्वप्नशय्यासनसुखेरतः ॥२॥ रोगास्तस्योपजायन्तेसन्तर्पणनिमित्तजाः । प्रमेहकण्डूपिडकाः 'कोठपाण्डामयज्वराः ३॥ कुष्ठान्यामप्रदोषाश्चमूत्रकृच्छमरोचकम् । तन्द्राक्लेव्यमतिस्थौल्यमालस्यंगुरुगात्रता॥४॥ इन्द्रियेस्रोतसांराधोबुद्धेमोहःप्रमीलकः। शोफाश्चैवंविधाश्चान्येशीघ्रमप्रतिकुर्वतः ॥ ५॥ जिस प्रकार चिकने, मीठे, भारी और पिच्छिल द्रव्य तथा नवीन अन्न मद्य, अनूपसंचारी जीवोंका मांस, जलचर जीवोंका मांस दूध और मिठाई, पुष्ट पदार्थ तृप्तिपूर्वक भोजन करनेसे संतर्पण होताहै । उसी प्रकार व्यायाम न करना, दिनमें सोना, सोने वैठनेके सुखमें आरामसे रहना इनसे प्रमेह, खुजली,पिडका,कोष्ठरोग, पाण्डुरोग, ज्वर, कुष्ठ, आमदोष, मूत्रकृच्छू, अरुचि, तन्द्रा, नपुंसकता, मेदरोम, आलस्य, भारीपन, इन्द्रियों के स्रोतोंका अवरोध, बुद्धिनाश, प्रमीलक, सूजन आदि अनेक प्रकारके रोग उत्पन्न होतेहैं ॥ १ ॥२॥ ३ ॥४॥५॥ • सतर्पणसे उत्पन्नहुए रोगोंमें चिकित्सा क्रम । शतमुल्लेखनंतेषांविरेकोरक्तमोक्षणम् । व्यायामश्चोपवालश्चधूमाश्चस्वेदनानिच ॥६॥ सक्षौद्रश्चाभयाप्रासःप्रायोरुक्षान्न सेवनम् ।चूर्णप्रदेहायेचोक्ताःकण्डूकोठविनाशनाः ॥ ७ ॥
अधिक संतपर्णसे उत्पन्न हुए रोगोंमें वमन कराना, विरेचन, रक्तमोक्षण, व्यायार, उपास, धूम्रपान, स्वेदन मधुके साथ हर्डका खाना और रूक्ष अन्नपानका