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________________ सूत्रस्थान-अ० २२.. (२५३) पित्तक्षारामिदग्धायेवम्यतीसारपीडिताः। विषस्वेदातियोगातःस्तम्भनीयास्तथापराः ॥३०॥ जो मनुष्य पित्त, क्षार तथा अग्निसे दग्ध हुए हों और वमन तथा अतिसारसें पीडित हों अथवा विष और स्वेदके अतियोगसे क्लेशित:हों, वह सव स्तम्भन करने योग्य हैं ॥ ३० ॥ सम्यक्लंघनके लक्षण। वातमूत्रपुरीषाणांविसर्गेगात्रलाघवे । हृदयोद्गारकण्ठास्यशुद्धौतन्द्राक्लमेगते ॥३१॥ स्वेदेजातेरुचौचैवरात्पपासासहो; दये। कृतलंघनमादेश्यनिय॑थेचान्तरात्मनि ॥ ३२ ॥ जब रोगकि वात,मूत्र और मलका त्याग होने लगे, शरीर हलका पडजाय,हृदय शुद्ध होय,डकार शुद्ध आने लगे,कण्ठ और मुख स्वच्छ प्रतीत होने लगे,तंद्रा और कुम दूर होजाय, शुद्ध पसीना आने लगे, रुचि प्रकट हो, भूख और प्यास लगने लगे, अपना शरीर शुद्ध, हलका और व्यथाहीन प्रतीत होवे तो समझना चाहिये कि उत्तम लंघन होगया ॥ ३१ ॥ ३२॥ अति लंघनके दोष । पर्वभेदोऽङ्गमर्दश्चकासःशोषोमुखस्यच ।क्षुत्प्रणाशोऽरुचिस्तुष्णादौवल्यंश्रोत्रनेत्रयोः ॥३३॥ मनसःसम्भ्रमोऽभीक्ष्णमूर्द्ध वायुस्तमोहृदि । देहाग्निवलनाशश्चलंघनेतिकृतभवेत्॥३४॥ पर्वभेद, अंगमर्द, खांसी, मुख सूखना, क्षुधा बंद होना, अरुचि, प्यास, श्रोत्र और नेत्रोंमें दुर्बलता, मनमें व्याकुलता, सांस फूलना, भ्रम, मोह,हृदयमें व्याकु. लता, मंदाग्नि ये सब लक्षण आतलंघनके होते हैं ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ सम्यक् बृहणके लक्षण । बलंपुष्टयुपलम्भश्चकार्यदोषविवर्जितम् । लक्षणंबंहितेस्थील्यमतिचात्यर्थबृहिते ॥३५॥ कृताकृतस्याचह्नयल्लंधिततद्धि रूक्षिते । स्तम्भितःस्याइलेलब्धेयथोक्तैश्चामौर्जितैः ॥३६॥ श्यावतास्तब्धगात्रत्वमुद्वेगोहनुसंग्रहः । हृद्वोंनिग्रहश्चस्यादतिस्तम्भितलक्षणम् ॥३७॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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