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________________ सूत्रस्थान - अ० २२. (२५१) जिनके शरीर में कफ, पित्त से उत्पन्न हुए रोग मन्दवल हैं उनको तथा जिनकों वमन, अतिसार, हृदयरोग, विषूचिका, अलसक, ज्वर, विबंध, गुरुता, उद्गार, अरोचक आदि रोग हो उन पाचनयोग्य मनुष्योंको लंघन कराना चाहिये ॥ १७ ॥ १८ ॥ अतएवयथोद्दिष्टायेषामल्पबलागदाः । पिपासानिग्रहैस्तषामुपवासैश्चताञ्जयेत् ॥ १९॥रोगाञ्जयेन्मध्यबलानुव्यायामातपमारुतैः । वलिनांकिंपुनर्येषां रोगाणामवरंवलम् ॥ २० ॥ 1 उपरोक्त रोग तथा अन्य भी अल्पवल जो रोग हैं वह सव प्यासके रोकने से संयमसे तथा उपवाससे जीतने योग्य हैं ॥ १९ ॥ मध्यबली रोग व्यायाम, धूप और वायुसे लंघन करने योग्य हैं। लंघन द्वारा वडे २ बलवान् रोग भी जीते जो सकते हैं और अल्पवल रोगांका तो कहना ही क्या है ॥ २० ॥ त्वग्दोषणांप्रमीढानांस्निग्धाभिष्यन्दिबृंहिणाम् । शिशिरेलंघनंशस्तमपिवातविकारिणाम् ॥ २१ ॥ त्वकरोगी, प्रमेहवाला, स्निग्ध, अभिष्यंदयुक्त, स्थूल, और वातरोगीको भी शिशिर ऋतु लंघन करना पथ्य है ॥ २१ ॥ वृंहणका वर्णन । अदिग्धविद्धमाक्लष्टवयःस्थंसात्म्यचारिणाम् मृगमत्स्याविहङ्गानांमांसंबृंहणमुच्यते ॥ २२ ॥ । जो दुर्बल, किसीका माराहुआ और कठोर, जीर्ण न हों, स्वस्थहों ऐसे सब प्रकाके मृगांका मांस और मछलियों तथा पक्षियों का मांस बृंहण कहा जाता है २२ ॥ क्षीणाःक्षताः कृशावृद्धा दुर्बलानित्यमध्वगाः । स्त्री मद्यनित्या ग्रीष्मे चबृंहणीयानराः स्मृताः ॥ २३ ॥ जो मनुष्य क्षीण, क्षत, कृश, वृद्ध, दुर्बल तथा रास्ता चलनेसे थका हुआ हो तथा स्त्रीसंग और मद्यका सेवन करनेवाला हो, ग्रीष्मऋतुमें वह बृंहण करनेकें : योग्य है ॥ २३ ॥ •
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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