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सूत्रस्थान-१० २२. .
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गुरुरुवाच । यत्किञ्चिल्लाघवकरंदेहेतल्लङ्घनस्मृतम् । बृहत्वंयच्छरिस्यजनयेत्तच्चव्हणम् ॥६॥ रोक्ष्यंखरत्ववैषधेयत्कुर्यात्तद्धिरूक्षणम् । स्नेहनस्नेहनिःष्यन्दमार्दवक्लेदकारकम् ॥७॥ स्तम्भगौरवशीतनंस्वेदनस्वेदकारकम् । स्तम्भनंस्तम्भयंतियद्दतिमन्तंचलंध्रुवम् ॥८॥ इस प्रकार अग्निवेशके कहेहुए वाक्यको सुनकर आत्रेय भगवान् इस प्रकार कथन करने लगे । जो शरीरमें.लघुताका करनेवाला है उसको लंघन कहतेहैं । जो शरीरको पुष्ट करनेवाला है उसको बृहण कहतेहैं एवम् जो शरीरमें रूक्षता, खरत्व विशदता उत्पन्न करे उसको रूक्षण कहतेहैं । चिकनाई, अभिष्यंद, मृदुता, छेद उत्पन्न करनेवाली क्रियाको स्नेहन कहतेहैं । स्तम्भ, गुरुता, शीतता नष्ट करके 'पसीना लानेवालेको स्वेदन कहतेहैं, जो पदार्थ चलनेवाले पतले द्रव्यको रोकदेवे उसको स्तम्भन कहतेहैं ॥ ६ ॥ ७॥ ८ ॥
लंधन द्रव्य। लघूष्णतीक्ष्णाविषदंरूक्षसूक्ष्मखरंसरम् । ' कठिनश्चैवयद्रव्यंप्रायस्तल्लङ्घनस्मृतम् ॥ ९॥ जो द्रव्य लघु, उष्ण, तीक्ष्ण, विषद, रूक्ष, सूक्ष्म, खर, सर और कठिन हो वह प्रायः लंघन कहाजाताहै, एवं निरशनको भी लंघन कहतेहैं ॥ ९ ॥
बृहण द्रव्य । गुरुशीतमृदुस्निग्धंबहुलंसूक्ष्मपिच्छिलम् ।
प्रायोमन्दस्थिरंसूक्ष्मंद्रव्यंबृंहणमुच्यते ॥ १०॥ जो भारी, शीतल, मृदु, स्निग्ध, धन, सूक्ष्मपिच्छिल, मन्द, स्थिर और सूक्ष्म ___ हो वह द्रव्य प्रायः बृहण कहाजाता है ॥१०॥
रूक्षण द्रव्य । रूक्षलघुखरंतीक्ष्णमुष्णंस्थिरमपिच्छिलम् ।
प्रायशःकठिनश्चैवयद्व्यंतद्धिरूक्षणम् ॥११॥ जो द्रव्य रूक्ष, लघु, खर, तीक्ष्ण, उष्ण, स्थिर अपिच्छिल तथा कठिन हो वह प्रायः रूक्षण होताहै ॥ ११ ॥