SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३४ ) चरकसंहिता - भा० टी० । वर्णं. मुखका स्वाद आदि होते हैं ऐसे २ पित्तात्मक लक्षणों के होनेसे पित्तविकारकों निश्चय करे ॥ १८ ॥ पित्तविकारों में चिकित्साक्रम । तंमधुरतिक्तकपायशीतैरुपक्रमैरुपक्रमेत स्नेहविरेकप्रदेहपरिषेकाभ्यङ्गावगाहादिभिः पित्तहरैर्मात्रांकालञ्चप्रमाणीकृत्य । विरेचनन्तु सर्वोपक्रमेभ्यः पित्ते प्रधानतममन्यन्तेोभिषजः ॥ १९ ॥ पित्तकी चिकित्सा मीठे, कडुवे कषैले और शीतल द्रव्योंद्वारा करे | तथा पित्तकों शान्त करनेवाले स्नेहन, विरेचन, प्रलेप, परिषेक, अभ्यंग, अवगाह द्वारा मात्रा काल विचारकर चिकित्सा करे। पित्तनाशक संपूर्ण चिकित्साओं में विरेचन कराना वैद्यजन सबसे उत्तम चिकित्सा मानते हैं ॥ १९ ॥ तद्ध्यादित एवामाशयमनुप्रविश्य केवलं वैकारिकंपित्तसूलञ्चापकर्पतितत्रावजितेपित्तेऽपिशरीरान्तर्गताः पित्तविकाराः प्रशान्तिमापद्यन्ते । यथाग्नौव्यपोढे केवलमग्निगृहञ्चशीतं भवतितद्वत्॥२०॥ क्या के विरेचनकारक औषधि आमाशय में प्रवेश करके विकारकारक पित्तकों जडसे उखाडकर विरेचन द्वारा निकालदेती है आमाशय में बढे हुए पित्तको जीतले - नेसे शरीरान्तर्गत पित्तविकार स्वयं शांत होजाते हैं जैसे अनिके नष्ट होनेसे अग्निका स्थान भी स्वयं शीतल होजाता है उसीके समान पित्तविकार स्वयं शांत होजाते हैं २० कफके २० रोग | श्लेष्मविकाराश्चविंशतिरतऊर्द्धं व्याख्यास्यन्ते । तद्यथा-तृतिश्च तन्द्राच, निद्राधिक्यञ्च, स्तौमित्यञ्च, गुरुगात्रताच, आलस्यञ्च, मुखमाधुर्यञ्च, मुखस्रावश्च, उद्द्वारश्च; लेप्मोहरणञ्च, मलस्याधिक्यञ्च, कण्ठोपलेपश्च, वलाशश्च हृदयोपलेपश्च, धमनीप्रतिचयश्च, गलगण्डश्च, अतिस्थौल्यञ्च, शीताग्निताच, उदर्दश्च श्वेतावभासताच, श्वेतमूत्रनेत्र वर्चस्वश्रेतिविंशतिःइलेप्मविकाराः ॥ २१ ॥ अपयोग प्रकार के कफर्क विकारों को कहते हैं। वह इसप्रकार हैं। तृप्ति (अरुचि), तन्द्रा, निवासी अधिकता, स्तमित्य, अंगों का भारीपन, आलस्य, मुखमं मीठापन, लावदना, उहार, चारचार कफका भूकना, मलकी अधिकता, कंटमें कफका लिपा
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy