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. . सूत्रस्थान-अ०-१९.. (२२५) ककेरुक, मकेरुक, लेलिह, सशूलक और सौसुराद यह पांच प्रकारके पुरीषज कृामै होतेहैं । इस प्रकार सब मिलकर २० प्रकारकी कृमिजाति है। इन पीसोसे ही शरीरको कष्ट होताहै इसलिये बीस प्रकारका कृमिरोग मानाहै ॥ ३ ॥ विंशतिःप्रमेहाइतिउदकमेहश्चेक्षुमेहश्चरसमेहश्चसान्द्रमेहश्च सान्द्रप्रसादमेहश्चशुक्लमेहश्चशुक्रमेहश्चशीतमहश्चशनमैहश्च : सिकतामेहश्चलालामहश्चतिदशश्लेष्मनिमित्तानक्षारमेहश्चकालमेहश्चनीलमेहश्चलोहितमेहश्चमञ्जिष्ठामेहश्चहरिद्रामेहश्चेति षट् पित्तनिमित्ताः । वसामेहश्चमजमेहश्चहस्तिमेहश्चमधुमेह-. श्वेतिचत्वारोवातनिमित्ताइतिविंशतिःप्रमेहाः॥४॥ . बीस प्रकारके प्रमेह हैं। उनमें-उदकमेह, इक्षुमेह रसमेह, सांद्रमेह, सान्द्रप्रसाद मेह, शुक्लमेह शुक्रमेह, शीतमेह, शनैमह सिकतामेह, लालामेह यह १० प्रकारके प्रमेह कफसे होतेहैं । क्षारमेह, कालमेह, नीलमेह, लोहितमेह, मंजिष्ठामेह, हरिद्रामेह ..यह छः प्रमेह पित्तसे होतेहैं । वसामेह, प्रजामह, हस्तिमेह, मधुमेह, यह ४ प्रमेह वातसे.होतेहै । इस प्रकार सब मिलकर बीस प्रकारके प्रमेह हुए ॥ ४॥ . विशतियोनिव्यापदइतिवातिकीपैत्तिकोश्लैष्मिकांसान्निपातिकीचेतिचतस्त्रः दोषजाः । दूष्यसंसर्गप्रकृतिनिर्देशैरवशिष्टाःषोडशनिर्दिश्यन्ते । तद्यथा-रक्तयोनिश्चारजस्काचाचरणाचातिचरणाचप्राक्चरणाचोपप्लुताचोदावर्तिनीचकणिनीचपु-. . वघ्नीचान्तर्मुखीचसूचीमुखीचशुष्काचवामिनीचषण्डयोनिश्च. महायोनिश्चेतिविंशतियोनिव्यापदः केवलश्चायमुद्देशः । यथो-. देशमभिनिर्दिष्टइति ॥ ५॥ बीस प्रकारके योनिव्यापत् रोग हैं । उनमें बात, पित्त, कफ, सन्निपात इनसे चार प्रकारके हुए । दोष, दूष्य, संसर्ग और स्वभावके निदेशसे १६ प्रकारके और . • होतेहैं । वह इस प्रकार हैं जैसे-रक्तयोनि, अरजस्का, अचरणा, अतिचरणा, प्राक्
चरणा, उपप्लुता, उदावर्तनी, कर्णिनी, पुत्रप्नी, अंतर्मुखी, सूचीमुखी, शुष्का,.. वामिनी षडयोनि और महायोनि इस प्रकार सब मिलकर २० योनिरोग हुए। यह . पर पूर्वसंग्रहके उद्देशसे संख्यामात्र कथन कीगई है ॥ ५॥