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________________ (२२०) चरकसंहिता-मा० टी०। अध्यायका संक्षिप्तवर्णन । तत्रश्लोको। संख्यानिमित्तरूपाणिशोथानांसाध्यतानच । तेपांतेषांविकाराणांत्रिविधंवोध्यसंग्रहम् ॥ विधिभेदविकाराणांत्रिविधं दोषसंग्रहम् ॥ १२ ॥ प्राकृतंकर्मदोषाणांलक्षणंहानिवृद्धिषु। वीतमोहरजोदोषमोहमानमदस्पृहः । व्याख्यातवांस्त्रिशोफीयेरोगाध्यायेपुनर्वसुः ॥ ५३॥ इति रोगचतुष्केत्रिशोफीयोऽष्टादशोऽध्यायःसमाप्तः ॥१८॥ इस त्रिशोथीय अध्यायमें शोयोंके कारण, शोथ, शोथजविकार और उनकी संख्या उनके रूप तथा साध्यासाध्यता, दोषज और आगंतुज शोथ,शोथके विकाराके भेद, तीन प्रकारका दोषसंग्रह, प्रकृतिस्थ दोषोंके कर्म, दोषोंकी क्षीणता और वृद्धि के लक्षण, यह सव मोह, रजोदोष, लोभ, मान, मद और स्पृहाराहत पुनर्वसुजीने कथन किया है ॥ ५२ ॥ ५३॥ इति श्रीमहर्पिचरकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यान्तर्गतटकसालनिवासिवैद्यपजानन वारल पं० रामप्रसावंद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभापाटीकायां त्रिशोफीयो नामाष्टादशोऽध्यायः ॥ १८॥ एकोनविंशोऽध्यायः। अथातोऽदरीयमध्यायंव्याख्यास्यामइतिहस्माहभगवानात्रेयः। अब हम अष्टोदरीय अध्यायकी व्याख्या करेंगे ऐसा भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे। रागांकी संख्या । इहवल्वष्टावुदराणिअष्टोमबाघाताःअष्टोक्षीरदोपाअष्टौरेतोदोपाःसप्तकुष्टानिसप्तपिडकाःसप्तवीसाःपडतीसाराःपडुदावर्ताः पागुल्माःपञ्चप्लीहदोपाःपञ्चकासाः पञ्चश्वासाःपञ्चहिकाः
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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