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चरकसंहिता-भा० टी०। मालेश, प्रलेप, परिषेक, अनुलेपन, वमन, विरेचन, शिरोविरेचन, आस्थापन, अनुवासन, इन सवकी यथायोग्य साधनसामग्री होनी चाहिये और मलमूत्र त्याग: नेका पात्र, और वमनके पात्र धोकर साफ रखने चाहिये, अन्य उपधान, शिला, इलक्षण और शुद्ध होनी चाहिये । तथा वस्त्रशस्त्रआदि अन्य उपकरण भी रक्खे । धूमपानकी नली, वस्तिकर्मके लिये पिचकारी, और उत्तरवास्तिका सामान, कृशः हस्त, तराजूकांटा आदि, मापनेका पात्र, घृत, तेल, चरवी, मज्जा,शहद, फाणित, लवण, काष्ठ, जल, सहदकी वनी सुरा,सीधु, सौवीर, तुषोदक, मैरेय, मेदक, दही, दधिमंड, उदस्वित्, धान्याम्ल, और गोमूत्र आदिक सामान रखने चाहिये ॥९॥
तथाशालीषष्टिकमुद्माषयवतिलकुलत्थवदरमृद्विकाश्मर्यपरूषाभयामलकविभीतकानिनानाविधानिचस्नेहस्वेदोपकरणानिद्रव्याणितथैवो हरानुलोमिकोभयभाञ्जिसंग्रहणीयदीपनीयपाचनीयोपशमनीयवातहराणिसमाख्यातानिचौषधानि यच्चान्यदपिकिञ्चिद्वयापदःपारसंख्यायोपकरणंविद्यात् । यच्च प्रतिभोगार्थतत्तदुपकल्पयेत् ॥ १०॥ तथा शालीचावल, साठी, मूंग, उडद, जौ, तिल, कुलथी, उन्नाभ, मुनका, फालसा, हरड, बहेडा, आमला, और अनेक स्नेह तथा स्वेदनकी सामग्री और ऊपरफा दोष निकालनेवाली, अनुलोमन, ऊपर नीचका शोधन करनेवाली, स्तंभ. नकर्ता, दीपनीय, पाचनीय, उपशमनीय, और वायुनाशक औषधिये तथा अन्यान्य
औषधिय जो वमन विरेचनमें किसी कारणसे हुए उपद्रवों में काम देनेवाली हाँ ऐसी औषाधियं पास रक्खे । तथा जिन अन्य द्रव्योंसे रोगीको सुख प्राप्त होसके. उनको भी संग्रह करे ॥ १० ॥
ततस्तंपुरु¥यथोक्ताभ्यांस्नेहस्वेदाभ्यांयथार्हमुपपादयेत् । तञ्चेदस्मिन्नन्तरेमानसःशारीरोवाव्याधिःकश्चित्तीव्रतरःसहसाम्यागच्छेत्तमेवतावदस्योपावर्तयितुंयतेत । ततस्तमुपावय॑तावन्तमेवैनंकालंतथाविधेनैवकर्मणोपाचरेताततस्तंपुरुषस्नेहस्त्रेदोपपन्नमनुपहतमानसमाभिसमीक्ष्यसुखोपितंप्रजीर्णभक्तं शिरःस्नातमनुलिप्तगात्रंस्रग्विणमनुपहतवस्त्रसंवर्तिदेवताग्निद्विजगुरुवृद्धवेद्यानचितवन्तामप्टनक्षत्रोतथिकरणमुहकारवि