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चरकसंहिता।
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नेत्रमंडल. (Eye ball)
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इसमें "अ"नेत्रका प्रथमपटल अर्थात् सुपेद परदा. "क"स्वच्छ भाग. "ख" नेत्र भित्तिका द्वितीय पटल अर्थात् स्याह परदा. "ग" इसके नीचेका स्वच्छभाग. "घ" वहस्थान जहां सदैव जल भरा रहताहै. "." तृतीय पटल अर्थात् पुतलीवाला परता. "च"पुतली अर्थात् कृष्ण भाग. "छ" काचपटल चतुर्थअर्थात् आरवकाशीशा. "ज" नेत्रगत द्रव पदार्थ अर्थात् लेशदारशैकी जगह
"झ"दृष्टिशिराअर्थात् वी नाईकी रग. आयुर्वेदज्ञ वैद्य नेत्रों में चार पटल (परदे मानते हैं और यूनानी हकीम साततवदे मानते हैं और डाक्टर तीनही परदे मानते हैं.
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