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चरकसंहिता--भा० टी०। अध्यायका संक्षिप्त वर्णन ।
तत्रश्लोकः॥ नेहःस्नेहविधिःकृत्स्नव्यापत्सिद्धिःसभेषजा। यथाप्रश्नंभगवताव्याहृतंचान्द्रभागिना ॥ ९८॥
स्नेहाध्यायः समाप्तः। इस स्नेहाध्यायम-स्नेहके प्रकार, स्नेहविधि, स्नेहके मिथ्यायोगसे रोगोंका होना उनकी औषधि जैसे अग्निवेशने पूछा तदनुसार उनके उत्तर भगवान् आत्रेयजीन कथन किये ॥ ९८॥ इति श्रीमहर्षिचरकरणातायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यांतर्गतटकसालग्रामनिवासिवैद्यपंचानन वैद्यरत्न पं०रामप्रसादवद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभापाटीकायां
नेहाध्यायो नाम त्रयोदशोध्यायः ॥ १३ ॥
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चतुर्दशोऽध्यायः।
अथातःस्वेदाध्यायं व्याख्यास्यामः।
इति हस्माह भगवानात्रेयः। अब हम वेदाध्यायका कथन करतेहैं । ऐसा भगवान् आत्रेयनी कहने लगे।
स्वेदनकर्मका यत्न । अतःस्वेदाःप्रवक्ष्यन्तेयैर्यथावत्प्रयोजितैः ।
स्वेदसाध्याःप्रशाम्यन्तिगदावातकफात्मकाः ॥ १॥ अयम स्वेदोंका कयन फरतेहैं जिन स्वेदोंके टीक २ प्रयोग करनेसे स्वेदसाध्य चातकफात्मक रोग शीघ्र शांत होतह ॥ १ ॥
स्वेदनसे रोगशान्तिम दृष्टान्त । स्नेहपूर्वप्रयुक्तेनस्वेदेनावर्जितेनिले।
परीपत्रेतांसिनसन्जन्तिकथञ्चन ॥२॥ प्रथम रन का यदि वंदन करदिया जाताद तो उससे शरीरका वायु शांत जातहि माटि मल, मूत्र, शुक्र, यह विना श्रम निकल जातह ॥ २॥