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________________ "सूत्रस्थान-अ०.११. (१३१) पक्षवध ( पक्षाघात, अर्धाग), ग्रह ( अंगग्रह, किसी अंगका रहजाना) अपतानक, अर्दित, सोजा, राजयक्ष्मा, अस्थिशूल, संधिशूल, गुदभ्रंश,. और शिरोगत रोग, हृदयगत रोग, एवं वस्तिगत रोग, मध्यममार्गानुसारी कहेजातेहैं ॥ ५६ ॥ ___ कोष्टांनुसारी रोग। ज्वरातीसारछZलसकविचिकाश्वासहिकानाहोदरप्पीहादयोऽन्तर्मार्गजाश्च । विसर्पश्वयथुगुलमाशोंविद्रध्यादयःकोष्ठमार्गानुसारिणोभवन्तिरोगाः ॥ ५७ ॥ ज्वर, आतिसार, वमन, अलसक ( अजीर्णका भेद ), विसूचिका, श्वास, कास, हिचकी, अफरा, उदररोग, प्लीहरोग,यह आभ्यंतरमार्गजन्य रोग है। वीसर्प, शोथ, गुल्म, अर्श, तथा विधिआदि कोष्ठमार्गानुसारी रोग होते हैं ।। ५७ ॥ तीनप्रकारके वैद्य। . • त्रिविधाभिषजइति । भिषकुछ चराःसन्तिसन्त्येकेसिद्धसा-: . धिताः । सन्तिवैद्यागुणैर्युक्तास्त्रिविधाभिषजोभुवि ॥ ५८ ॥ .. तीन प्रकारके वैध हैं । छनचर वैद्य १, सिद्धसाधित वैद्य २, वैद्यगुणसम्पन्न वैद्य ३॥५८॥ भिषक्छनचरके लक्षण । वैद्यभाण्डौषधैःपस्तैःपल्लवैरवलोकनैः। . . .. लभन्तेयेभिषकूशब्दमज्ञास्तेप्रतिरूपकाः ॥ ५९॥ .. इनमें दूसरे वैद्योंके पात्र, औषध, पुस्तक, पत्रं आदि देखकर आपभी उनकी समान रूप बनाकर वैद्य कहलानेवाले प्रतिरूपक या छद्मचर वैद्य कहातेहैं ॥ ५९॥ सिद्धसाधितवैद्यके लक्षण ।। श्रीयशोज्ञानसिद्धानांव्यपदेशादतद्विधाः। वैद्यशब्दलभन्तेयेज्ञेयास्तेसिद्धसाधिताः॥६०॥ . जो वैद्य वैद्यगुणसम्पन्न तो नहीं परन्तु धनवान् यशवाले ज्ञानवान् और सिद्ध. लोगोंने उनकी प्रशंसा फैलादी हो उनको सिद्धसाधित वैद्य कहतेहैं ॥६०॥ . .. वैद्यगुणयुक्तके लक्षण! . . . .. . : प्रयोगज्ञानविज्ञानसिद्धिसिद्धाःसुखप्रदा...... जीविताभिसरास्तेस्युर्वैधत्वतेष्ववस्थितमितिः॥६१।।
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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