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________________ - सूत्रस्थान-०.११. .. (.१२७) वाणी, मन, और शरीरकी प्रवृत्तिको कर्म कहतेहैं । मन, वाणी, शरीर, इनकी __ अत्यंत प्रवृत्तिको अतियोग कहतेहैं और सर्वथा अप्रवृत्तिको अयोग कहते हैं ॥४०॥ वाणीके मिथ्यायोगका वर्णन । सूचकानृताकालकलहाप्रियाबद्धानुपचारपरुष वचनादिवामिथ्यायोगः ॥ ४१ ॥ इनमें-निंदा करना, झूठा बोलना, विनासमय कहना, कलह करना, अप्रिय बोलना, अंट संट बकना, असंगत अश्रद्धेय वाक्य कहना और दुखदाई वाक्य कहना वाणीका मिथ्यायोग है ॥ ४१ ।। _मानस मिथ्यायोग। ' भयशोकक्रोधलोभमोहमानेयामिथ्यादर्शनादिर्मानसोमिथ्या'. योगः ॥४२॥ भय, शोक, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान, ईर्ष्या, मिथ्यादर्शन(कुछका कुछ मानलेना.) आदि मनका मिथ्यायोग है ॥ ४२॥ - शारीरिक मिथ्यायोग। वेगधारणोदीरणविषमस्खलनपतनाङ्गप्रणिधानाङ्गप्रदूषणप्रहारमर्दनप्राणोपरोधसंक्लेशनादिःशारीरोमिथ्यायोगः॥४३॥ मलमूत्रादिकोंके वेगको रोकना,एवं बिना वेग त्यागना विषमतासे वैठना सोना आदि, गिरना, फिसलना, अंगोंको दूषित करना, शरीरमें चोट आदि लगाना, शरीरको बेहिसाब मलना,बेहिसाब श्वासका रोकना और शरीरको पीडा देना। यह शरीरका मिथ्यायोग है ॥ ४३ ॥ - . कर्मके मिथ्याभोगका संक्षिप्त वर्णन । ...संग्रहेणचातियोगायोगवर्जकर्मवाङ्मनःशरीरजमहितमनुपदिष्टंयत्तच्च मिथ्यायोगविद्यादिति । त्रिविधविकल्पंत्रिविधमेवकर्मप्रज्ञापराध इतिव्यवस्येत् ॥४४॥ .. . यह संक्षेपसे कहागयाहै इनसे अन्य, और भी अतियोग और अयोगसे भिन्न जो वाणी, मन, शरीर, इनके अहित कर्म हैं उनको भी मिथ्यायोग कहतेहैं । यह जो वाणी, मन, शरीर, इन तीनोंके कर्मोका तीन प्रकारका अतियोगादि विकल्प कहाहै यह बुद्धिके दोषसे ही होताहै ॥ ४४॥.. . . ..
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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