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________________ सूत्रस्थान - अ० १०. ( १०९) ज्ञानवानभिषङ्मुमूर्षुमातुरमुत्थापयितुम् । परीक्ष्यकारिणोहि कुशला भवन्ति । यथाहियोगज्ञेोभ्यासनित्यइष्वासोधनुरादायेषुमपास्यन्नातिविप्रकृष्टेमहतिकार्येनापबाधोभवति । सम्पादयतिचेष्टकार्य्यम् । तथाभिषक्स्वगुणसम्पन्न उपकरणवान्वीक्ष्यकर्मारम्भमाणः साध्यरोगमनपराधः सम्पादयत्येवातुरमारोग्येणं तस्मान्नभेषजमभेषजेनाविशिष्टंभवति ॥ ५ ॥ यह सुनकर आत्रेय कहने लगे हे मैत्रेय ! यह शंका करना आपका वृथा है: - क्या कारण है जो षोडश गुण संपन्न चिकित्सासे रोगी मरजाते हैं और आरोग्य हो जाते हैं आप ऐसा कहते हैं । जो रोग भेषजसाध्य है उसमें षोडशगुणयुक्त चिकित्सा की हुई कभी निष्फल नहीं जाती। और जो कहते हो विना चिकित्सा से ही रोगी अच्छे होते देखे हैं उनके रोगमें विशेषतासे संपूर्ण चिकित्सा की आवश्यकता नहीं उनके अल्पदोषवाली व्याधि स्वयं भी परिपाकको प्राप्त हो शांत होजाती है । जैसे कोई मनुष्य गिरपडा हो वह अपने आप उठनेको तैयार है परंतु दूसरेका दिया सहारामिलने से वह और भी सुखपूर्वक उठ जाता है । और दूसरेके सहारेसे उठनेका वलप्राप्त होनेसे विना कष्ट खडा होता है । ऐसाही साध्य रोगों में औषध के प्रयोगसे रोगी शीघ्र आरोग्य होजाते हैं । और जो औषधकि प्रयोगसे रोगी शीघ्र आरोग्य होजाते हैं । और जो औषध सेवन करनेपर भी मरजाते हैं सो संपूर्ण रोग भेषजसाध्य नहीं होते अर्थात् असाध्य रोग औषधसे साध्य नहीं हैं ॥ ४ ॥ और जो रोग चिकित्सा करने से दूर होते हैं वह चिकित्सा के विना शांत होही नहीं सकते । ऐसे ही असाध्य रोग संपूर्ण यत्नोंसे भी साध्य नहीं होते । और मरणोन्मुख रोगीको ज्ञानवान् वैद्य भी आरोग्य नहीं कर सकता । इसलिये, साध्य, असाध्य, कष्टसाव्यकी परीक्षा करके चिकित्सा करनेवाले कुशल वैद्य निदानद्वारा रोगको जानकर चिकित्सा करनेसे व्याधिको जीतलेते हैं । जैसे वाण चलाने में चतुर तथा नित्यका अभ्यासवाला धनुषधारी सामने आयेहुए वडे शरीरवालेको वाण मारकर विद्ध करताहुआ आप उसे बडे बलवालेसे अवाध्य रहता है । और अपने इच्छित कार्यको सिद्ध करता है । ऐसे ही योग्य वैद्य भी अपने गुणोंके बलसे और उपकरण ( औषधादि) के बलसे विचारपूर्वक चिकित्सा करताहुआ साध्य और कष्टसाध्यरोगों में निर्विघ्नता से रोगियोंको आरोग्य कर लेता है । इसलिये चिकित्सा करना और न करना वरावर नहीं हो सकता ॥ ५ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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