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________________ (१०६) चरकसंहिता-भा० टो। - वैद्यके उपदेश । :. . चिकित्सितेत्रयःपादायस्माद्वैद्यव्यपाश्रयाः। तस्मात्प्रयत्नमातिष्ठद्भिषस्वगुणसम्पदि ॥ २३॥ . चिकित्साके तीन पाद (आतुर, परिचारक, भेषज) वैद्यके ही अधीन हैं इसलिये वैद्यको उचित है, कि अपने गुणोंमें पूर्ण रूपसे संपन्न रहनेमें यत्नवान् रहै ॥२३॥ वैद्यकी चार प्रकारकी वृत्ति । मैत्रीकारुण्यमार्गेषुशक्येप्रीतिरुपक्षणम् । प्रकृतिस्थेषभूतेषुवैद्यवृत्तिश्चतर्विधेति ॥ २४ ॥ वैद्यको रोगियों में मित्रभाव और दयाभाव रखना योग्य है तथा साध्य रोगों में साहसपूर्वक यत्न करना उचित है और स्वस्थ मनुष्योंमें जिस प्रकार वह रोगी न हों यह यत्न रखना आवश्यक है इस चार प्रकारकी बुद्धिको ब्राह्मी बुद्धि कहतेहें ॥ २४ ॥ अध्यायका संक्षिप्त विवरण। . तत्रश्लोको। भिषगाजतांचतुष्पादंपादःपादश्चतुर्गुणः । भिषप्रधानपादेभ्योयस्माद्वैद्यस्तुयद्गुणः ॥२५. ज्ञानानिबुद्धिाहीचभिषजांयाचतुर्विधा।सर्वमेतचतुष्पादेखुड्डाकेसम्प्रकाशितमिति ॥२६॥ ___ खुड्डाकचतुष्पादाध्यायःसमाप्तः ॥९॥ चिकित्साके चार पाद और एक एक पादके चार चार गुण उन सबमें वैद्यकी प्रधानता, वैद्यके चार प्रकारके गुण और ज्ञान ब्राह्मी बुद्धि, यह इस खुड्डाकचतुष्पाद अध्यायमें वर्णन किया गयाहै ॥ २५॥ २६ ॥ । इति श्रीमहर्षिचरकप्रणातायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यांतर्गतटकसालनिवासिवैद्यपञ्चा . नन वैद्यरत्न पं. रामप्रसादवैद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकायां . . . . खुड्डाकचतुष्पादो नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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