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चरकसंहिता-भा० टी०। तस्मात्तुपारसमयेस्निग्धाम्ललवणानसान् । औदकानूपमांसानांमध्यानामुपयोजयेत् ॥ १०॥ विलेशयानांमांसानिप्रसहानांभृतानिच । भक्षयेन्मदिरांसीधुंमधुचानुपिबेन्नरः॥११॥ . इसलिये शीतकालमें चिकने, खट्टे, नमकीन, रसयुक्त पदार्थोंको और नलचारी (मछली आदि ) अनूपसंचारी जीवोंके मांस और प्रसह आदि विलमें रहनेवालोंके मांस, मद्य, सीधु, आर मधु इनका सेवन करे ॥ १० ॥ ११ ॥
हेमन्तमें कृत्य। . . . मोरसानिक्षुविकतर्विसांतैलंनवौदनम् । हेमन्तेऽभ्यस्थतस्तोयमुष्णञ्चायुनहीयते ॥ १२ ॥ अभ्यंगोत्सादनमूर्ध्नितैलंजन्ताकमातपम् । भजेद्भूमिगृहञ्चोष्णमुष्णंगर्भगृहंतथा ॥ १३ ॥ शीतेसुखंवृतंसेव्यंयानंशयनमासनम् ।प्रावाराजिनकौष्णेयप्रवेणीकुथकास्तृतम् ॥ १४ ॥ गुरूष्णवासादिग्धाङ्गोगुरुणाऽगुरु- } णासदा। शयनेप्रमदांपीनांविशालोपचितस्तनीम् ॥ १५॥ आलिङ्गयाऽगुरुदिग्धाङ्गीसुप्यात्समदमन्मथः प्रकामश्चनिषेवेतमैथुनशिशिरागमे ।। १६ ॥ हेमंत ऋतुम-दूध, खांड, आदि मिठाई वसा, तैल, नवीन अन्न, और गर्म जलसे स्नान इनका सेवन करनेसे आयु क्षीण नहीं होती तथा शरीर पर मालिश, उवटना, सिरम तेल लगाना, जैताक स्वेद, धूप, गर्म घर, घरके वीचका कमरा, चारों तरफसे ढकी हुई सवारी, शय्या, आसन, वाघम्बर, शाणीके और रेशमक कपडे रंग बेरंगे कंवल, गर्म और भारी वस्त्र, इनका सेवन करे तथा गाढे अगरका लेपन कियाकरे और तीखे पुष्ट स्तोंवाली, अंगरसे मुगंधित लेपन कोहुई कामदेवको भी माहित करनेवाली स्वीसे लिपटकर शयन करे और इच्छापूर्वक मैथुन करे ॥ १२-१६ ॥
शिशिर कृत्य । वर्जचदन्नपानानिलघनिवातलानिच । प्रवातंप्रमिताहारसुदमन्थं हिमागमे ॥ १७॥