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: सूत्रस्थान-अ० ६. ८५७ ) नांपतनन्तथा। क्षवथुश्चातितन्द्राचबुद्धमोहोऽतिनिद्रता॥२४॥ घूमपानात्प्रशाम्यतिबलभवतिचाधिकम् । शिरोरुहकपालानामिन्द्रियाणांस्वरस्यच ॥२५॥ नचवातकफात्मानोबलिनोऽप्यू
जत्रुजाः। धूमवक्रकपानस्यव्याधयःस्युःशिरोगताः ॥२६॥ • 'आं पीनेसे भारीपन,मस्तक पीडा,पीनस;अविभेदक,कानकी पीडा, नेत्रपीडा, खांसी, हिचकी, श्वास, गलेका रुकना, दांतोंकी दुर्बलता, रोममार्गका बंद होना, कान नासिका और नेत्रोंका बहना तथा दुर्गंधि, दंतपीडा, अरोचक,हनुग्रहं, मन्या स्तंभ, खाज, कृाम, पांडु, मुखसे कफका गिरना, स्वरभंग, गलशुंडी, उपजिह, खालित्य,वालोंका पीलापन व गिरनाछींक, तंद्रा, बेहोशी,अतिनिद्रा यह संब नष्ट होतेहैं । और बाल,शिर, इंद्रिय,स्वर इनका बल बढताहै ।जो मनुष्य मुखसे धूएंको श्रीकर नासिका द्वारा निकालताहै उस मनुष्यके ऊर्ध्वजत्रुवोंमें वात कफके बलवाने रोग नहीं होते और शिरमें होनेवाली वात कफकी व्याधिये नहीं होती॥२१-२६॥
धूमपानके काल । ' प्रयोगपानेतस्याष्टोकालाःसम्परिकीर्तिताः। वातश्लेष्मसमुरक्लेशःकालेष्वेषुहि लक्ष्यते ॥ २७॥ स्नात्वाभुक्त्वासमुल्लिख्य
क्षुत्त्वादन्तानविघृष्यच । नावनाञ्जननिद्रान्तेचात्मवानधूमपो '' भवेत् ॥ २८ ॥ तथावातकफात्मानोनभवन्त्यूर्द्धजत्रुजाः ।
रोगास्तस्यतुपेयाःस्युरापानास्त्रिस्त्रयस्त्रयः ॥२९॥ परंद्विकालपायीस्यादतःकालेषुबुद्धिमानाप्रयोगेस्नैहिकेत्वेवं विरेच्यंत्रिश्चतु:पिबत् ॥३०॥ धुंएके पीनेके आठ काल हैं क्योंकि वात कफके बलवान होनेके भी यही आठ काल हैं । स्नान करके,भोजन करके, वमन करके, छीकें लेकर, दतौनके पीछे, नास लेनके पीछे, अंजन करके, और सोकर उठके बुद्धिमान मनुष्य धूमपान करे।इस प्रकार धूमपान करनेसे उजत्रु (गर्दनसे.ऊपर) के होनेवाले वात और कफके रोग कभी नहीं होते । यह धूमपानके आठ काल कहे हैं,इनमें एक समय तीन २ वार धूमपान करना चाहिये।यही धूमपानका क्रम है यद्यपि.धूमपानके आठ समय कहे गये तथापि एक दिन में प्रायोगिक धूम दो समय, स्नेहिक धूम एक बार, विरेचन चूम एकदिनमें तीन चार बार पीवे ॥ २७-३०॥ .. .
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