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सूत्रस्थान -अ० ४. पायाइति संज्ञिताः । तस्मात्पञ्चविधायोनिः कषायाणामुदाहृता ॥ ८० ॥ तथाकल्पनमप्येषामुक्तंपञ्चविधंपुनः । महताञ्च कषायाणांपञ्चाशत्परिकीर्तिता ॥ ८१ ॥
यहां अध्यायका उपसंहार करते श्लोक कहते हैं । संक्षेपसे ६०० विरेचन संग्रह के लिये कहें और उनके ६ आश्रय कहेहैं । छै रसोंमें नमकको छोड़ पांच रसोंवाले कषाय होते हैं इसीलिये कपायोंकी पांच प्रकारकी योनि है । इसीप्रकार कषायोंकी कल्पना भी पांच प्रकारकी कही है । और पचास महाकषाय कहे हैं ॥ ७९ ॥ ८० ॥ ८१ ॥
पञ्चचापिकषायाणांशतान्युक्तानि भागशः । लक्षणार्थंप्रमाणंहिविस्तरस्यनविद्यते ॥ ८२ ॥
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फिर उनको ५०० कषायों में विभागसे कथन करदियाहै लक्षणार्थ कहने में विस्तारसे कथन करने की आवश्यकता नहीं ॥ ८२ ॥
नचालमतिसंक्षेपःसामर्थ्यायोपकल्प्यते ।
अल्पबुद्धेरयं तस्मान्नातिसंक्षेपविस्तरः ॥ ८३ ॥ मन्दानांव्यवहाराय बुधानांबुद्धिवृद्धये । पञ्चाशत्को ह्ययंवर्गः कषायाणामुदाहृतः ॥ ८४ ॥
और अति संक्षेपसे कहना भी अल्पबुद्धिवालों के लिये समझने में कठिन होगा । इसलिये न अति संक्षेपसे और न विस्तारसे, साधारण मनुष्योंके व्यवहारके लिये और बुद्धिमानोंको बुद्धिकी वृद्धिके लिये यह पांचसौ कषायोंका वर्ग कहा है ॥ ८३ ॥ ८४ ॥ .
तेषां कर्मसुवाह्येषुयोगमाभ्यन्तरेषुच । संयोगंचवियोगञ्चयोवेदसभिषग्वरः ॥ ८५ ॥
इति भेषजचतुष्कषविरेचनशवाश्रितीयोनाम चतुर्थोध्यायः ॥