SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७४ कुदकु५-मारा है।।३०।। साहंति जं महल्ला, आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं। जं च महल्लाणि तदो, महव्वया महहे याइं।। ३१।। जिन्हें महापुरुष धारण करते हैं, जो पहले महापुरुषोंके द्वारा धारण किये गये हैं और जो स्वयं महान हैं।।३१।। वयगुत्ती मणगुत्ती, इरियासमिदी सुदाणणिरवेक्खो। अवलोयभोयणाए, अहिंसए भावणा होति।।३२।। १. वचनगुप्ति, २. मनोगुप्ति, ३. कायगुप्ति, ४. सुदाननिक्षेप और ५. आलोकितभोजन ये अहिंसाव्रतकी पाँच भावनाएँ हैं।।३२।। कोहभयहासलोहापोहाविवरीयभासणा चेव। बिदियस्स भावणाए, ए पंचेव य तहा होति।।३३।। क्रोधत्याग, भयत्याग, हासत्याग, लोभत्याग और अनुवीचिभाषण (आगमानुकूल भाषण) ये सत्यव्रतकी भावनाएँ हैं।।३३।। सुण्णायारणिवासो, विमोचितावास जं परोधं च । एसणसुद्धिसउत्तं, साहम्मीसंविसंवादो।।३४।। शून्यागारनिवास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, एषणशुद्धि और सधर्माविसंवाद ये पाँच अचौर्यव्रतकी भावनाएँ हैं।।३४।।। महिलालोयणपुव्वरइसरणससत्तवसहि विकहाहिं। __पुट्टियरसेहिं विरओ भावण पंचावि तरियम्मि।।३५।। रागभावपूर्वक स्त्रियोंके देखनेसे विरक्त होना, पूर्वरतिके स्मरणका त्याग करना, स्त्रियोंसे संसक्त वसतिका त्याग करना, विकथाओंसे विरत होना और पुष्टिकर भोजनका त्याग करना ये पाँच ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनाएं हैं।।३५।।। अपरिग्गहसमणुण्णेसु, सद्दपरिसरसरूवगंधेसु। रायद्दोसाईणं परिहारो भावणा होति।।३६।। मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, और गंधमें रागद्वेष आदिका त्याग करना ये पाँच परिग्रहत्याग व्रत की भावनाएँ हैं।।३६।। इरियाभासाएसण, जा सा आदाण चेव णिक्खेवो। संजमसोहिणिमित्ते, खंति जिणा पंचसमिदीओ।।३७।
SR No.009545
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy