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________________ आशीर्वचन प्रणाम मैंने जीना सीखना चाहा, चिंतन किया, पुरुषार्थ किया, बहुत कुछ मैंने पाया। हर पल, हर जगह, हर मोड़ पर, . मिला मुझे नया ज्ञान। हर विषय के गुरु मिले महान्, खुली आंखें, खुला है मन, दिखाई देता है हर तरफ ज्ञान । पहले गुरु मंडलिक और पौर्णिमादि ने, दिया योग-निसर्गोपचार का ज्ञान । शर्मा और दिकोंडा गुरु ने दिखाई, समर्पित कार्यकर्ता की शान। शोभा ताई ने शांत वृत्ति से दिया, वेद-अग्निहोत्र का ज्ञान। साधु-साध्वियों ने न जाने दिया कितना ज्ञान, अध्यात्म से करवाई पहचान । जिन-जिन से मिला ऐसा ज्ञान, उन सबको अंतःकरण से करती हूँ प्रणाम । संस्कार-निर्माण व्यक्ति जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सक्षम होता है। संस्कारहीन व्यक्ति नई-नई समस्या पैदा करता है। संस्कार के अनेक क्षेत्र हैं। जिस व्यक्ति में अध्यात्म, धर्म और नैतिकता का संस्कार होता है, वह सदाचार को बढ़ाता है। संस्कार निर्माण वर्तमान युग की अपेक्षा है। अलका सांखला प्रबुद्ध श्राविका है, संस्कार-निर्माण के क्षेत्र में निष्ठा से सक्रिय रही है। 'आओ जीना सीखें' संस्कार निर्माण की दृष्टि से एक सार्थक प्रयास है। यह विद्यार्थी के जीवन में संस्कारों के जागरण में निमित्त बने। - आचार्य महाप्रज्ञ टमकोर, 28 नवम्बर 2006 -अलका
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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