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आओ जीना सीन...
सफलता (48)
कैसे करें संकल्प : छोटे-छोटे संकल्पों से शुरुआत करो संकल्प स्पष्ट होने चाहिए अणुव्रतों से संकल्प शक्ति बढ़ती है संकल्प को कागज पर लिखकर, सहजता से पढ़ सकें, ऐसी जगह पर चिपकाना चाहिए एक लक्ष्य निर्धारित करके उसी पर ध्यान केन्द्रित करने से संकल्प मजबूत होता है नियमित दीर्घ-श्वास का प्रयोग और ध्यान के अभ्यास से संकल्प शक्ति बढ़ती है उठते और सोते समय संकल्पों को याद करें और उन पर चिंतन करें
आओ जीना सीन...
अफलता (49) का समुद्र तैर कर सफलता पाओगे।
नियमित अभ्यास से संकल्प-शक्ति मजबूत होती है। संकल्पों द्वारा मानव की इच्छाशक्ति जागृत हो जाती है। संकल्प सुप्त शक्तियों को जगाने का सशक्त माध्यम है।
इसलिए बच्चो ! संकल्प की गहराई को समझो। यह मन की एक रचनात्मक एवं सकारात्मक क्रिया है, जिसके आधार पर आप कोई भी कठिन काम कर सकते हैं। व्यक्ति-व्यक्ति में इच्छाशक्ति का स्तर भिन्न-भिन्न होता है। कमजोर इच्छाशक्ति, मध्यम इच्छाशक्ति और दृढ़ इच्छाशक्ति । बच्चो ! आप दृढ़ इच्छाशक्ति वाले बनो और जीवन में सफलता प्राप्त करो।
जीवन में विकास और प्रगति के लिए संकल्प आवश्यक है। इस बात को ध्यान में रखकर कुशलतापूर्वक संकल्प का आयोजन-नियोजन करो। आध्यात्मिक दृढ़ संकल्प द्वारा चामत्कारिक शक्तियां भी प्राप्त होती हैं। संकल्प शक्ति सभी में है पर उसका विकास करना जरूरी है।
अपने संकल्पों का कुशलता पूर्वक आयोजन कर उन्हें पूर्ण करना चाहिए। अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार संकल्प करने चाहिए। संकल्प-शक्ति संपूर्ण जीवन को बदल सकती है। असाधारण काम करने में भी सहायक बन सकती है। बच्चो ! तुम्हें अपने संकल्प के प्रति जागृत होना चाहिए। छोटे-छोटे संकल्प भी जीवन को बदल सकते हैं। इनसे मानसिक परिवर्तन होता है। स्थिरता और धैर्य से इनका विकास करना है। प्रतिदिन 1-2 संकल्प करने हैं और उनको पूरा करने का भरसक प्रयत्न करना है।
रात को सोने से पहले चिंतन करना - आज का संकल्प सफल हुआ या नहीं। यदि नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ? गलती कहाँ हुई? इसके लिए स्वपरीक्षण और स्वनिरीक्षण आवश्यक है।
सुप्त शक्तियों का जागरण है संकल्प :
देखेंगे, करेंगे, कर रहा हूँ - ऐसे शब्दों में दृढता नहीं होती। भाग्य के भरोसे सफलता प्राप्त नहीं होती। अपने अंदर ही संकल्पों की शक्ति छिपी है, बस उसे जागृत करना है।
रात-दिन संकल्पों की नौका पर सवार होकर मस्ती से काम करो। बाधाओं
संकल्प...
एक लड़का था। हमेशा 'पी' लिखता था। हर जगह चाहे नोटबुक हो, बेंच अथवा पुस्तक । सब लोग उसे पूछते थे कि 'पी' क्या है? क्यों लिखते हो 'पी'? मंद मुस्कुराता, कोई जवाब नहीं देता था। पढ़ाई में व्यस्त रहता था।
कॉलेज गया वहां भी 'पी' लिखना चालू रखा। पूछने के बाद जवाब न देने से पूछने वालों ने पूछना ही छोड़ दिया पर उस लड़के को 'पी' के नाम से पहचाना जाने लगा। सभी उसे 'पी' कहकर बुलाते थे। उसके 'पी' का रहस्य कोई भी समझ नहीं पा रहा था।
बिना किसी की परवाह किए वह दृढतापूर्वक पढ़ाई करता, हर जगह 'पी', 'पी', 'पी' लिखता था और हमेशा अव्वल दरजे पर भी रहता था। आगे जाकर वह प्रिन्सीपल बन गया। पहले दिन जब वह प्रिन्सिपल बन कर आया तब उसने 'पी' का रहस्य बताया- बचपन से मेरी इच्छा थी कि मैं 'प्रिन्सीपल' बनूं। संकल्प के रूप में मैने 'पी' को मेरा ध्येय बनाए रखा। 'पी' बनने का सपना आज पूरा हुआ।