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________________ स्वयं को पठचानो (33) आओ जीना सीन... अपने दीए खुद बनो आओ जीना सीन... स्वयं को पश्चानो (32) जीवन की पोथी पटो आओ! हम भी हमारे जीवन की पोथी पढ़ें। स्वयं को जानें । इस उमर में जो आदतें पड़ती हैं वे स्थायी होती हैं। ऐसी कोमल संवेदनशील उम्र में पवित्र और नैतिक शिक्षा का अध्ययन करें। वृत्ति बदलेगी, प्रवृत्ति बदलेगी, अच्छाइयों की आवृत्ति करते-करते दृष्टि बदलेगी और आपकी सृष्टि भी बदलेगी। ऐसा ज्ञान जिससे बदलेगा विचार और विचार से बदलेगा आचार । फिर बदल जाएगा सारा व्यवहार । बच्चो! तुम्हें एक बात बताऊं? जापान छोटासा देश, कितनी प्रगति कर रहा है। जानते हो, अपने यहां जिस काम को छः घंटे लगते हैं, जापान में वह काम 3 घंटे में होता है। इसका कारण यह है कि जापान में सबको ध्यान का प्रशिक्षण दिया जाता है। झैन संप्रदाय के नाम से यह ध्यान सिखाते हैं। यह शिक्षा का प्रायोगिक रूप है। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ हमें कुछ ऐसे प्रयोग करने हैं, जो हमारे संपूर्ण व्यक्तित्त्व को निखार देंगे और सर्वांगीण विकास करेंगे। हम बातें ज्यादा करते हैं, प्रयोग कम करते हैं। इसलिए सफलता पाने में हमें वक्त लगता है। "जीवन की पोथी" भीतर को बदलो, सब कुछ बदल जाएगा। बच्चो ! सब कुछ अंदर ही है। बस उसे बाहर लाना है। भारतीय संस्कृति के प्राचीन अभ्यास में यह शिक्षा शामिल थी। अंग्रेज आए, जानबूझाकर उस शिक्षा पद्धति को नष्ट किया। आज की शिक्षा पद्धति की यह विडम्बना है कि व्यक्ति विश्व के बारे में सब कुछ जानता है, पर स्वयं के बारे में कुछ नहीं जानता। __ भगवान बुद्ध का आखिरी वचन, जो उन्होंने इस पृथ्वी से विदा होते दिया था वह स्मरण योग्य है - "अप्प दीपो भव" अपने दीए खुद बनो। अपने दीए खुद बनने के लिए भीतर के प्रयत्न ही काम के हैं। शिक्षा में बाहरी प्रयत्न अधिक है, पुस्तकीय ज्ञान है। पुस्तकीय पढ़ाई अच्छी है पर उसके साथ कुछ प्रयोगों की जरूरत है। अपने 'अप्प दीपो नए खुद बनो आचार्य महाप्रज्ञजी लिखते हैं - "दूसरी सारी पुस्तकें पढ़ी जाती है, जब आँखें खुली होती हैं और चंचलता होती है। किंतु जीवन की पोथी तब नहीं पढ़ी जाती है जब आँखें खुली होती हैं, चंचलता होती है। यह तभी पढ़ी जाती है जब स्थिरता होती है। जो व्यक्ति एकाग्रता, अन्तर्दर्शन और शिथिलीकरण के नियमों का पालन करता है, वह इस महान ग्रंथ को पढ़ने में समर्थ होता है।" भगवान बद्ध
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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