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________________ दशार्ध पूजा निछारक पतीयानकाः पतीआनकाः पदक पर्याप् ( के 'पर्यवसाय' ) ३८ १३७-२६ [ २४ ] २४०, २३-२५ २७२, १-७ } २४७-२५ ( १ ) २८-११, ११२-७ "Aho Shrutgyanam" प्रहार करबो के थू कोने अपमान करवु (?) ( अपमान करवा माटे माथा उपर "दशार्धपूजा" कर्यानी बात छे.) घरनो अंक भाग ( १ ) ( कुशीळ स्त्री घरमा 'निहारक' मा जत पण बीओ, ज्यारे नदीना खूणाखचिरा पण जाणे ओवी बात छे.) जेमनो जमीनमा भाग छे के जमीन के मन्दिर उपर परंपरागत भोगवटानो हक छे तेओ ( अंक संदर्भमा जमीन उपरना हकनी बात छे, बीजामा मंदिर उपरना हकनी ). काकडीने 'पदकवृता' कही छे. जेम तेम करीने समजावु [ अक संदर्भमा पिताने परामे समजावी चंदनकाष्ठनु गाड भरीने वेपार माडे परदेश जवानी बात छे. अन्यत्र पति, सासुखसरा अने भात- पिताने गमे तेम समजावीने पतिनी साथै परदेश जवानी बात छे "पुरातन प्रबन्ध संग्रह" ८२, २०-२१ मां पण जेनुं घर बळी गयु छे, तेने लोकोओ समजावी लोधानी वात द्वे. सांडेसरा अने परीख 'पर्य वस्थाप्' होवानु सूचवे छे. ते मूळनी दृष्टि कदाच विचारवा जेवु', पण जोडणी अहीं पण 'पर्यवसाय' छे ।
SR No.009525
Book TitlePanchashati Prabodh Sambandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendravijay
PublisherSuvasit Sahitya Prakashan
Publication Year1968
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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