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________________ [१०] "प्रबन्धपंचशती'मांथी मने जेमनो अर्थ बेठो नथी तेवा शब्दोनी अक यादी जुदी तारवीने आपी छे. व्युत्पत्ति के अर्थचर्चानी दृष्टि कशी विस्तार को नथी. मुनि जिनविजयजी संपादित 'उक्तिव्यक्तिप्रकरण' के 'औक्तिकसंग्रह'मां आपेली यादीओमां गुजराती-राजस्थानी शब्दो अने प्रयोगोनु जे विशाळ पाया पर संस्कृतीकरण थयु होवानु जोवा मळे छे ते उपरथी कही शकाय के आ जातनी भाषा अने शैलीनी घणी लांबी परंपरा हती. अने वर्णन माटे जेम वर्णकोमांथी, तेम भाषा माटे औक्तिकोमाथी केट लीक तैयार सामग्री मळी रहेती. अने 'प्रबन्धपंचशती'ने तो, जेम वस्तुनी बाबतमा तेम भाषानी बाबतमां पुरोगामी प्रबन्धसाहित्यमाथी सारो एवो लाभ मळेलो छे. अनेक प्रयोगो आगला साहित्यमांधी पण तुलना माटे टांकी शकाय तेम छे. जैन संस्कृत प्रबन्धोना अने कथाग्रंथो तथा टीकाग्रन्थोना संस्कृतनु सर्वांगीणं अने व्यवस्थित अध्ययन एक बृहद प्रयास मागी ले छे, तेमां कोश अने व्याकरण ओ बन्ने पासांओनो समावेश थवो जरूरी छे. कोशमा नवा शब्दो अने नवा अर्थो नोंधाय अने व्याकरणमा उच्चारण, जोडणी, समास, शब्दसाधक प्रत्ययो नामिक अने आख्यातिक विभक्तिप्रयोगो, वाक्यरचना, रूदिप्रयोगो अने विशिष्ट कहेवतोनी नोंध थाय. आमां सातमी-आठमी सदीथी लईने सोळमी-सत्तरमी सदी सुधीना साहित्यमांथी काटकम अने पायानी बोलीओना भेदने लक्षमा राखीने सामग्रीसंचय थवो जोई. ___ गमे तेम पण प्राकृत-अपभ्रशना अने विशेषे तो प्राचीन अने मध्यकालीन गुजराती राजस्थानी ( अने हिन्दी)ना अभ्यास माटे प्रबन्धोमां अने कथाग्रन्थोमां, वृत्तिग्रंथो अने औक्तिकोमा अढळक सामग्री भरी पडी छे अने दृष्टि ते साहित्य अमूल्य खजाना जेवु छे. उपरांत मध्यकालीन लोककथाना अध्ययननी दृष्टिले पण आ प्रबन्धोमांथी घणी सामग्री प्राप्त थाय छे. पंचतंत्रादि लोकप्रिय कथाग्रन्थोमांथी धणी कथाओ 'प्रबन्धपंचशती'मां लीधेली छे. अन्य लोकप्रचलित के जैन परंपरामा प्रचलित कथाओ पण थोडाक फेरफार साथे अहीं स्थान पामी छे. कथाघटदोनी परंपरानी तपास करनार माटे प्रबन्धसाहित्य जोवू पण अनिवार्य गणाय. 'प्रबन्धपंचशती'नी जे केटलीक कथाओने मळ्ती कथाओ के घटको अन्यत्र जाणीता छे तेनो पण नोचे सहेज निर्देश को छे. आ रीते जैन परंपरानी दृष्टिले तथा इतिहास अने दन्तकथानी दृष्टिले 'प्रबन्धपंचमती'नु महत्त्व होवा उपरांत, गुजराती भाषा अने लोककथाओना अध्ययननी दृष्टिले पण तेनु केटलु महत्त्व छ तेनो काईक ख्याल मरशे. जेमनो उपर निर्देश कर्यो ते (१) शब्दसूचि, (२) संदिग्ध अर्थवाला शब्दो, (३) केटलाक नोंधपात्र प्रयोगो अने (४) कथाओ विशे टूकी नोंध नीचे आप्यां छे. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009525
Book TitlePanchashati Prabodh Sambandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendravijay
PublisherSuvasit Sahitya Prakashan
Publication Year1968
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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