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प्रास्ताविक निवेदन । दिल्ली या दिल्ली [क्र० ५१]
चंपापुरी [ऋ० ३५] मथुरा [क्र० ९]
कोटिशिला [क० ४१] वाराणसी [क्र० ३८]
कलिकुंडकुर्कुटेश्वर [क्र० १५] कौशांबी [ऋ० १२]
मिथिला [क्र० १९] रत्नपुर [क्र. २०] कांपिल्यपुर [क० २५] अयोध्यापुरी [क्र० १३ ]
श्रावस्तीनगरी [क्र. ३७] दक्षिण और बराड
कर्णाटक और तेलंगण नासिक्यपुर [क्र० २८]
कुल्यपाक माणिक्यदेव [क० ५२, ५७] प्रतिष्ठानपत्तन [ क्र. २३]
आमरकुंड पद्मावती [क्र० ५३] अन्तरिक्षपार्श्वतीर्थ [क्र. ५८]
कन्यानयमहावीर [क्र० २२, ५१] ६. विस्तृत विवेचन दूसरे भागमें __ ग्रन्थगत इन सब स्थानोंका विस्तृत परिचय, इतिहास और हिंदी भाषान्तर आदि दूसरे भागमें देनेका हमारा संकल्प है । ग्रन्थकारका विशेष परिचय भी वहीं दिया जायगा। अतः यहां पर अधिक लिखना अनावश्यक होगा। ६७. प्रतियोंका परिचय
प्रस्तुत आवृत्तिके संशोधन और सम्पादन करने में हमने जिन पुरातन हस्तलिखित प्रतियोंका उपयोग किया है उनका परिचय इस प्रकार है
A प्रति-अहमदाबादके डेलाके नामसे प्रसिद्ध जैन उपाश्रयमें संरक्षित ग्रन्थ भाण्डारकी प्रति । पत्र संख्या ५८ । इस प्रतिमें सब कल्पोंका पूरा संग्रह है। कलिकुंड-कुर्कुटेश्वर नामका कल्प-प्रस्तुत आवृत्तिका क्रमांक १५दो दफह लिखा हुआ है। प्रतिकी लिखावट साधारण ढंगकी है और पाठ-शुद्धि भी प्रायः साधारण ही है। हमने जितनी प्रतियोंका संग्रह किया उनमें यह सबसे पुरानी है। विक्रम संवत १४६६ में यह लिखी गई है। इसके अंतमें जो पुष्पिका लेख है वह पृष्ट १३५ पर मुद्रित है । उससे ज्ञात होता है कि 'श्रीमालीवंशमें पैदा होनेवाले देवा व्यवहारी और उसकी पत्नी हासलदेवीके मांडण, पद्मसिंह और मालदेव नामके तीन पुत्रोंने अपने माता-पिताके श्रेयोऽर्थ इस ग्रंथकी यह प्रति लिखवाई।' इस प्रतिके अंतिम पृष्ठ पर अन्धगत सब कल्पोंकी सूचि भी लिखी हई है जो अन्य किसी प्रतिमें उपलब्ध नहीं होती। ____B प्रति-उक्त भाण्डारकी दूसरी प्रति, जिसकी पत्र संख्या ३८ है । इस प्रतिमें कुल २९ कल्प लिखे हुए मिलते हैं । प्रस्तुत आवृत्तिके क्रमांक १४. १९. २३. २५. २९. ३१ से ३३, और ३५ से ५८ तकके कल्प इसमें अनुपलब्ध हैं । ग्रन्थकी समाप्तिका सूचक जो कथन है वह भी इसमें अनुल्लिखित है । प्रतिकी लिखावट सुंदर है और पाठ भी कुछ अधिक शुद्ध है। अंतमें लिखने-लिखाने वालेका कोई निर्देश नहीं है । 'शुभं भवतु श्रीश्रमणसंघस्य || श्री। इतना ही उल्लेख किया हुआ है। इससे प्रतिके लिखे जाने के समयका कोई सूचन नहीं मिलता। पत्रोंकी स्थिति देखते हुए अनुमान किया जा सकता है कि प्रायः ४०० वर्ष जितनी पुरानी यह अवश्य होगी।
८ प्रति-इसी भाण्डागारमें की तीसरी प्रति । पत्र संख्या ४१ । इसमें कुल मिला कर ५२ कल्प लिखे हुए हैं। इसका प्रारंभ उजयंततीर्थकल्प-इस आवृत्तिके ४ थे कल्प-से होता है । पहले तीन कल्प इसमें बिल्कुल