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पाठ चौथा
इन्द्रियाँ
बेटी – माँ ! पिताजी जैन साहब क्यों कहलाते हैं ? माँ - जैन हैं, इसलिए वे जैन कहलाते हैं। जिन का भक्त सो जैन या
जिन-आज्ञा को माने सो जैन। जिनदेव के बताये मार्ग पर चलने वाला
ही सच्चा जैन है। बेटी – और जिन क्या होता है ? माँ - जिसने मोह-राग-द्वेष और इन्द्रियों को जीता वही जिन है। बेटी – तो इन्द्रियाँ क्या हमारी शत्रु हैं जो उन्हे जीतना है ? वे तो हमारे ज्ञान ___ में सहायक हैं। जो शरीर के चिह्न प्रात्मा का ज्ञान कराने में सहायक
हैं वे ही तो इन्द्रियाँ हैं। माँ - हाँ, बेटी! संसारी जीव को इन्द्रियाँ ज्ञान के काल में भी निमित्त होती
हैं, पर एक बात यह भी तो है कि ये विषय-भोगों में उलझाने में भी
तो निमित्त हैं। अतः इन्हें जीतने वाला ही भगवान बन पाता है। बेटी – तो इन्द्रियों के भोगों को छोड़ना चाहिए, इन्द्रिय ज्ञान को तो नहीं ? माँ - तुम जानती हो कि इन्द्रियाँ कितनी हैं और किस ज्ञान में निमित्त हैं ?
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