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________________ प्राक्कथन संवेग, वैराग्य, प्रशमादि सम्यग्दृष्टि के लक्षण हैं । इनमें संवेग संसारभीरूता है। संवेग में रति के लिए संसार का यथार्थ ज्ञान आवश्यक है। आत्मा का कर्म से संयोग ही संसार । शेष इसी का विस्तार है । विचारों से कर्म तथा कर्म से विचार उत्पन्न होते I दोनों का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। जैन दर्शन के ग्रन्थों में इसे द्रव्यकर्म और भावकर्म कहा गया है । मुनिश्री प्रशमरतिविजयजी इसके लिए क्रमशः कर्म और संस्कार शब्द का प्रयोग करते हैं दर्शनशास्त्र का ज्वलन्त प्रश्न है कि जड़ और चेतन का परस्पर संयोग कैसे होता है और यह संयोग किस प्रकार कहा ? इसका उत्तर जैनों ने द्रव्यकर्म और भावकर्म के रूप में निमित्त कारणतावाद कर उपस्थित किया है । इस सुन्दर ग्रन्थ की विषयवस्तु भी यही है, अतः ग्रन्थ पर विचार करने के पूर्व इस प्रश्न का विचार समीचीन है। T पाश्चात्य दर्शन में इस सम्बन्ध को मनोदेह सम्बन्ध के रूप में देखा गया है, क्योंकि उनके अनुसार चेतना का सम्बन्ध मन से है और अचेतन का सम्बन्ध शरीर से है । वहाँ मन और देह के सम्बन्ध में जो विचारधाराएँ प्रचलित हैं उनमें मुख्य हैं अन्त क्रियावाद और समानान्तरवाद । अन्तक्रियावाद के अनुसार शरीर और मन परस्पर शक्ति का विनिमय करते हुए एक दूसरे में रूपान्तरित होते रहते हैं । समानान्तरवाद के अनुसार दोनों सर्वथा स्वतन्त्र तत्त्व हैं । दोनों समानान्तर प्रक्रिया करते हैं, परन्तु परस्पर प्रतिक्रिया नहीं करते । अपने अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर भी नहीं है। साथ ही दोनों इतने सम्बद्ध भी है कि एक दूसरे के बिना नहीं रहते । इसप्रकार अन्तक्रियावाद दोनों के परस्पर रूपान्तर को स्वीकार करता है, परन्तु परस्पर रूपान्तर से दोनों पृथक् तत्त्व नहीं कहे जा सकते क्योंकि वस्तु का वस्तुत्व तभी तक है, जब तक उसके गुणधर्म निरन्तर परिणमित होकर भी उसके नित्य धर्म रहें, दूसरे के गुणधर्म न हों । अन्यथा वस्तुएँ भिन्न नहीं रहती । समानान्तरवाद में दोनों का कोई भी सम्बन्ध सम्भव नहीं है । वस्तुतः ये दोनों ही इस समस्या का कोई उत्तर नहीं देते कि मन और शरीर संयुक्त कैसे होते हैं ? दूसरे प्रश्न सम्बन्ध के स्वरूप के विषय में उत्तर देने की कोशिश करते हैं जो पहले प्रश्न के उत्तर के बिना सम्भव नहीं है । मानव ही नहीं, ५
SR No.009509
Book TitleSamvegrati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay, Kamleshkumar Jain
PublisherKashi Hindu Vishwavidyalaya
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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