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अयथार्थ बोध का एक कारण अविवेक है, जो निमित्त के अनुसरण करने पर चित्त को भावातुर कर देता है । (१९)
नमक डाल देने से पानी अपने मूल माधुर्य से दूर हो जाता है, उसी प्रकार कर्मोदय से आत्मा स्वभाव से दूर हो जाता है । (२०)
सभी संवेदनाओं में (सुख दुःख के अनुभव में) आत्मा कर्म के प्रति सापेक्ष रहता है । सुख दुःख आने पर भी उसका अनुभव स्वतन्त्र नहीं रहता । (२१)
कर्मों के अधीन आत्मा देह के माध्यम से इंद्रियों को अनुकूल प्राप्त होने पर सुखका प्रतिकूल और प्राप्त होने पर दुःख का संवेदन करता है । (२२)
देह से भिन्न होने पर भी आत्मा देह के द्वारा जगत का अनुभव करता है इसलिए देह में स्थित सुख-दुःख को वह आत्मा के सुख-दुःख मानता है । (२३)
कषाय, नोकषाय और मिथ्यात्व के कारण आत्मा को अनादिकाल से शरीर में आत्मा का भ्रम उत्पन्न हुआ है । (२४)
पाँचवा प्रस्ताव
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