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कहलाता है।
अकाल मृत्यु पानेवालों का आयुष्य प्रायः सोपक्रम होता है।
निरुपक्रम :- आयुष्यकाल की मर्यादा पूर्ण होने के बाद ही मरते है उसका निरुपक्रम आयुष्य होता है । देव, नारकी, तीर्थकर, चक्रवर्ती विगेरे आत्माओं का आयुष्य निरुपक्रम होता है।
हर जीवों का आयुष्य अलग-अलग होता है । उसे समझने के लिए आयुष्य द्वारा का अभ्यास करना पड़ता है।
३. स्वकाय स्थिति :- पृथ्वीकाय हो या पंचेन्द्रिय जीव हो । आयष्य पूरा होने के बाद उसे नया जन्म लेना पड़ता है। मरने के बाद हम नई गति में उत्पन्न होते है । अब पृथ्वीकाय मर जाय बाद में फिर से पृथ्वीकाय के रूप में ही जन्म लेता है ? पंचेन्द्रिय मनुष्य मर जाए बाद में फिर से पंचेन्द्रिय मनुष्य के रूप में ही जन्म लेता है? इस सवाल का जवाब है, हाँ । पृथ्वीकाय मरकर फिर से पृथ्वीकाय के रूप से जन्म ले सकते है। पंचेन्द्रिय मनुष्य मरकर फिर से पंचेन्द्रिय के रूप से जन्म ले सकते हैं । परन्तु हमेशा के लिए ऐसा नहीं बनता। पृथ्वीकाय का जीव पृथ्वीकाय में ही फिर से जन्म लेता है। ऐसा कितनीबार बन सकता है वो हमको स्वकायस्थिति द्वार से समझने को मिलता है। पंचेन्द्रिय मनुष्य पंचेन्द्रिय के रूप में फिर से जन्म लेता है - ऐसा कितनी बार तक बन सकता है वो हमको स्वकाय स्थितिद्वार से समझने को मिलता
३८. अवगाहना
अवगाहना यानी शरीर का क्षेत्रविस्तार । जिस प्रकार शरीर के माप अलगअलग होते है उसी प्रकार अवगाहना भी अलग होती है । अवगाहना-अंगुल, हाथ, धनुष्य, गाउ और योजनादि अलग-अलग माप द्वारा निश्चित होती है। यह माप सामान्य रूप से ऐसे गिना जाता है । एक अंगुल का वेढा
= एक जव आठ जव
= एक अंगुल छह अंगुल
= एक पाद दो पाद
- एक वेंत दो वेत
= एक हाथ चार हाथ
- एक धनुष्य दो हजार धनुष
- एक कोश एक कोश
- एक गाउ चार कोश
= एक योजन इस प्रकार माप निश्चित होते है। इस माप से शरीर की अवगाहना गिन सकते हैं ।
अवगाहना दो प्रकार से गिनी जाती है । (१) उत्कृष्ट अवगाहना, (२) जघन्य अवगाहना
उत्कृष्ट अवगाहना यानी ज्यादा से ज्यादा हो सके उतनी अवगाहना। जघन्य यानी कम से कम हो सके उतनी अवगाहना ।
जीवविचार के लिए जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना गिनती में ली जाती है। इस गति के जीवों में सबसे ज्यादा अवगाहना इतनी है, ऐसा बताने में आता है। हालाँकि तब उस गति के सभी जीवों की अवगाहना इतनी नही होती । परन्तु उस जीव में ज्यादा से ज्यादा अवगाहना इतनी है, इस माप से ज्यादा अवगाहना इन जीवों की नहीं होती ऐसा बताने में आता है। + पृथ्वीकाय की उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल का असंख्यातवा भाग है । + अप्काय की उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल का असंख्यातवा भाग है ।
४. प्राण :- जीने के लिए शरीर चाहिए, शरीर में जीवनशक्ति चाहिए। शरीर में आत्मा, जीवनशक्ति द्वारा रहती है। उस जीवनशक्ति को प्राण कहते है। एकेन्द्रिय जीव, विकलेन्द्रिय जीव और पंचेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते है उसे हम प्राण द्वार से समझेंगे ।
योनि :- जीवों के उत्पत्ति स्थान को योनि कहते है। जीवों के उत्पति स्थान असंख्य है। परन्तु जिन-जिन स्थानों में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और संस्थान की समानता है उन स्थानों को यदि एक गिना जाए तो ऐसे ८४ लाख योनियाँ है। कौन से जीवों की कितनी योनियाँ है उसे हम योनिद्वार से समझेंगे ।
बालक के जीवविचार • ७१
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