________________
boy.pm5 2nd proof
तृषित (७) अव्याबाध (८) मरूत ( ९ ) अरिष्ट ।
ग्रैवेयक :
(१) सुदर्शन (२) सुप्रतिबद्ध, (३) मनोरम (४) सर्वभद्र (५) सुविशाल (६) सुमनस (७) सौमनस (८) प्रियंकर (९) नन्दीकर
अथवा दूसरी तरह से ग्रैवेयक देवों की पहचान |
(१) हिट्टिम - हिट्टिम, (२) हिठ्ठिम- मध्यम, (३) हिट्ठिम उवरिम (४) मध्यम, हिठ्ठिम (५) मध्यम- मध्यम (६) मध्यम उवरिम (७) हिट्टिम-उवरिम, (८) उवरिम - मध्यम (९) उवरिम उवरिम
अनुत्तर:
(१) विजय (२) वैजयन्त (३) जयन्त ( ४ ) अपराजित (५) सर्वार्थसिद्ध
+ बार देवलोक तक के देवों को कल्पोपन्न कहते है ।
ग्रैवेयक और अनुत्तर के देवों को कल्पातीत कहते है ।
+
बालक के जीवविचार • ६७
३५. पंचेन्द्रिय तिर्यंच - २० भेद
तिर्यंच पंचेन्द्रिय के तीन भेद है। जलचर स्थलचर और खेचर । स्थलचर के तीन भेद है । चतुष्पद, उरपरिसर्प, और भुज परिसर्प इस प्रकार कुल ५ भेद हुए। ये ५ भेद गर्भज भी होते हैं और संमूर्छिम भी होते है । पर्याप्ता भी होते है और अपर्याप्ता भी होते हैं । ५x४ = बीस भेद हुए । विस्तार से बीस भेदों की समझ १. जलचर तिर्यंच गर्भज पर्याप्त ३. जलचर तिर्यच संमूर्छिम पर्याप्त ५. स्थलचर चतुष्पद गर्भज पर्याप्त ७. स्थलचर चतुष्पद संमूर्छिम पर्याप्त ९. स्थलचर उरपरिसर्प गर्भज पर्याप्त ११. स्थलचर उरपरिसर्प संमूहिम पर्याप्त
२. जलचर तिर्यंच गर्भज अपर्याप्त ४. जलचर तिर्यंच संमूर्छिम अपर्याप्त ६. स्थलचर चतुष्पद गर्भज अपर्याप्त ८. स्थलचर चतुष्पद संमूर्छिम अपर्याप्त १०. स्थलचर उरपरिसर्प गर्भज अपर्याप्त १२. स्थलचर उरपरिसर्प संमूर्छिम अपर्याप्त
१३. स्थलचर भुजपरिसर्प गर्भज पर्याप्त १४ स्थलचर भुजपरिसर्प गर्भज
अपर्याप्त
१५. स्थलचर भुजपरिसर्प संमूर्छिम पर्याप्त १६. स्थलचर भुजपरिपरिसर्प संमूर्छिम
अपर्याप्त
१७. खेचर तिर्यंच गर्भज पर्याप्त १९. खेतर तिर्यंच संमूर्छिम पर्याप्त याद रखो......
१८. खेचर तिर्यंच गर्भज अपर्याप्त २०. खेचर तिर्यच संमूर्छिम अपर्याप्त
मनुष्य में अगर संमूर्छिम हो तो अपर्याप्त ही होते है । पंचेन्द्रिय तिर्यंच में संमूर्छिम हो तो पर्याप्त भी होते हैं और अपर्याप्त भी होते है ।
खेचर के चार भेद है। इनका समावेश खेचरतिर्यंच इस एक ही भेद में करना है । चर्मज, रोमज, समुद्ग और वितत ये चार भेद तो केवल जानकारी के लिए ही किये थे, बाकी तिर्यंच के २० भेद में तो खेचर तिर्यंच यह एक ही भेद गिनना है ।
६८ • बालक के जीवविचार