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२१. पर्याप्ति विकास
शरीर का निर्माण और शरीर के संवर्धन की शक्ति का निर्माण पर्याप्ति द्वारा होता है। जीव जन्म लेता है शरीर द्वारा जन्म लेने से पहले शरीर को बनाना पड़ता है । शरीर बन जाए, और शरीर में रहने का शुरू हो जाए बाद में जिन्दगी की शुरूआत होती है ।
१. आहार पर्याप्ति :
परलोक से नीकलकर जीव नई जगह पर जन्म लेने के लिए पहुँचता है। यहाँ पर अपने कर्मों के प्रभाव से शरीर को बनाने के लिए कुछ द्रव्यों को ग्रहण करता है। इन द्रव्यों को हम नजर से नहीं देख सकते । ग्रहण किये हुए द्रव्यों में से शरीर की आकृति बननी शुरू होती है। इस प्रकार शरीर की आकृति बनाने के लिये जीव, जन्म लेने से पूर्व जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है वह द्रव्य उसका आहार बनता है। आहार लेने से शरीर को आकार मिलने की शुरूआत होती है ।
इन द्रव्यों का आहाररूप में ग्रहण करने की शक्ति को आहार पर्याप्ति कहते हैं। पर्याप्त कुल छह हैं। आहार ग्रहण करने की शक्ति पहली पर्याप्ति है आहार पर्याप्ति ।
२. शरीर पर्याप्ति :
मकान बनाने के लिए सिमेन्ट, ईन्ट विगेरे इकट्ठे कर लो। तब काम की शुरूआत होती है। लेकिन सिमेन्ट ईन्ट रखने मात्र से मकान नहीं बनता । उनको विशेष प्रकार से लगाना पड़ता है । तो ही मकान बनता है। आहार पर्याप्त से शरीर के लिए द्रव्य तैयार होते हैं । परन्तु इनको शरीर रूप में जमाने की विशेष प्रक्रिया अलग से करनी पड़ती है। आहार से शरीर बनना शुरू हो जाए उसके लिए विशेष प्रक्रिया जिस शक्ति से साकार होती है उसे शरीर पर्याप्ति कहते हैं । शरीर पर्याप्ति से हम जिन्दगीभर साथ देनेवाले शरीर को बना सकते हैं ।
३. इन्द्रिय पर्याप्ति :
शरीर की पाँच अनुभव शक्ति यानी कि पाँच इन्द्रिय को तो हम जान चूके हैं। जैसे जैसे शरीर का विकास होता है वैसे-वैसे इन्द्रियों की शक्ति का
बालक के जीवविचार • ३१
विकास होता है । शरीर बनने के बाद उसमें अनुभव शक्ति का विकास होता है । उसके पीछे तीसरी पर्याप्ति काम करती है- इन्द्रिय पर्याप्त ४. श्वासोश्वास पर्याप्ति :
शरीर हो गया, इन्द्रियाँ बन गई, अब जिन्दगी को जीना है। जीने के लिए श्वास लेना चाहिए। श्वास लेने की और श्वास छोड़ने की कला चाहिए। ये कला अगर न हो तो शरीर और इन्द्रिय मिलने के बावजूद भी मरना पड़ता है । चोथी पर्याप्ति श्वासोश्वास पर्याप्ति है। यह पर्याप्ति श्वास लेने की और श्वास छोड़ने की शक्ति का निर्माण करके हमारी जिन्दगी को लम्बी बनाती हैं । ५. भाषा पर्याप्ति :
जो जीता है वह बोलता है। बोलने के लिए शब्द चाहिए। शब्द यानी भाषा। ये भाषा एक विशेष शक्ति है। भाषा सभी को नहीं आती पाँचवीं भाषा पर्याप्ति जिसको सिद्ध हो जाती है उसे ही बोलने की शक्ति मिलती है। इससे जो बोलता है वो दूसरों को सुनाई देती है, दूसरों को समझमें आता है । दूसरों को सुनने और समझने के लिए अनुकूल ऐसी भाषा बोलने की शक्ति भाषा पर्याप्ति के द्वारा बनती है ।
६. मन पर्याप्ति :
स्वयं का ख्याल करना, दूसरों का विचार करना, याद रखना, ये सारी शक्तियाँ अलग-अलग है। हमको अगर मन मिले तो ये शक्ति मिलती है । छठ्ठी मन पर्याप्ति हमको विचार करने की शक्ति देती है ।
इस दुनिया में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के पाँच प्रकार के जीव होते हैं ।
उसमें – एकेन्द्रिय जीवों को चार पर्याप्तियाँ होती है ।
१. आहार, २. शरीर, ३. इन्द्रिय, ४. श्वासोश्वास
विकलेन्द्रिय जीवों को पाँच पर्याप्तियाँ होती है ।
१. आहार, २. शरीर, ३. इन्द्रिय, ४. श्वासोश्वास, ५. भाषा । पंचेन्द्रिय जीवों को छह पर्याप्तियाँ होती है ।
१. आहार, २. शरीर, ३. इन्द्रिय, ४. श्वासोश्वास ५. भाषा, ६. मन ।
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