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Course
पहले मर नहीं सकते, ज्यादा से ज्यादा, समय यह घोर पीड़ा - वेदनाएँ उन्हे रोते रोते जबरदस्ती सहन करती पड़ती है। अन्योन्यकृत वेदना : ___जैसे मनुष्यलोक में एक गल्लीके कुते दुसरी गल्ली के कुते देखकर आमने सामने आ जाते है, भोंकते है और घुरकते है, वैसे नारकीओं भी परस्पर क्रोधसे गुस्से में एक दुसरे के सामने आते है। घुरकते है, झगड़ते है, मारते है, काटते है, दुःख देते है क्योंकि उनकेजन्मजात परस्पर वेर होते है। भाले-तलवार तीर और हाथ-पैर कि दांत के प्रहारसे एक दुसरे के अंगो अंगमें छेद हो जाते है और कत्लखाने में कटे हुऐ अंगोवाले पशुओकी भाँति तड़पते है।
नीचे नीचे और नीचे की नरकमें दुःख पीडा - त्रास आदि तीव्र, ज्यादा तीव्र और ज्याद तीव्र होते है । देहमान तथा आयुष्य अधिक होते है। नारकी जीवोके दुःख पीड़ा का सामान्य वर्णन :
जैनतर ग्रंथोके आधार पर जैनेतर-ग्रंथोमें कोई कोई स्थानमें नरक-नारकी और नरकजीवो के दुःख का वर्णन किया हुआ देखनेको मिलता है। उसमें भी खास करके गरूड पुराण में विशेष ध्यान दिया हुआ है। उसमें से थोडे भाग का इधर वर्णन है। अनेक प्रकार के भ्रमित चित्रवाले, मोहजालमें फसे हुए और कामभोगोमें आसक्त आत्माएँ अपवित्र नरकमें गिरते है।
- श्रीमद भगवद्गीता
यह लोकमें जो राजवंशी, राजपुरूष और पांखडीओ धर्मरूपी सेतुको तोड डालते है वह लोग मरके नरकमेंवैतरणी नदीमें जाते है। मर्यादाभ्रष्ट लोगोका वैतरणी नदीके मत्स्यो द्वारा भक्षण होता है । वह मरना चाहे तो भी मर सकते नहीं। खुदके पूर्वभवके पापोको याद करते हुऐ वह लोग विष्टा, पिशाब, पस, रक्त, बाल, नाखून, हड्डी, मेद मांस
और चरबीसे भरपूर नदीमे अतिशय परेशानी का अनुभव होता है।
हे राजन, चौदश, आठम, अमास, पूनम, सूर्यक्रांति आदि पर्वक दिवसोमें तेल, स्त्री और मांस को जो आत्माएँ भुगतती है वह यहां से मृत्यु पाकर जहाँ पिशाब और विष्टा का भोजन है ऐसी नरकभूमिमें उत्पन्न होते है।
- श्री विष्णुपुराण
अपने फायदेके लिए जो लोभ प्राणीओंको मार डालते है, और मांस के लिए जो धन देते है वह पापी आत्माए नरक में आदि स्थानों में जाकर अनंतवेदना भुगतते है। इसलिए मांस का त्याग करना चाहिए।
-श्रीलंकावतार सूत्र(बौद्ध)
(१)नास्तिक (२) मर्यादाका उल्लंघन करनेवाला (३) लोभी (४) विषय आसक्त (५) पाखंडी (६) नमकहराम । यह छःह प्रकारके जीवो मरकर नरककी पीडा भुगतनेवाले होते है।
जुगार, मांस, मदिरा, वेश्यागमन, शिकार, चोरी और परस्त्रीहरण यह सात व्यसन जीवोको नरकमें ले जाते है।
भूख, प्याससे पीड़ाते पापी नारकी जीवो नरकमें जहाँ जागवाली रक्तकी वैतरणी नदी बहती है वह नदीके रक्तकी वैतरणी नदी बहती है वह नदीके रक्त जैसे प्रवाही पुद्गल पीते है। अतिभयंकर अतिशय कुर यमदुतो से मुदगर-गदा आदिके मारसे नारकीओके मुँहमेसे नीकलता हुआ रक्त वह नारकीओ को वापस पीलाते है।
हे गरूड, इस प्रकारसे पापी जीवोकी पीडा अनेक प्रकारकी है। सर्व शास्त्रोमें कहे हुए वह पीड़ा का विस्तार से वर्णन करने से क्या ? अर्थात कितना भी वर्णन करो तो भी कम है।
- श्री गरुड पुराण
श्रीमद् भागवत स्कंघ प. से २६