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________________ हमेशा दूर रहेवानो प्रयत्न करवो कारण हवे आटलं जाण्या पछी कयो आत्मा "नरकमां जवा माटे तैयार थाय ?" जे आत्मा बेवकूफ होय तेज हवे आवां पापने आचरे। आटलुं जाण्या पछी हवे तो चार कषाय, राग, द्वेष, रात्रि भोजन, कंदमूळभक्षण, परस्त्रीगमन, बोळअथाणुं कदापि जीवनमां न आचटुं । जे नरकमां चार मुख्य दरवाजां छे तेने तो जिंदगीभर तिलांजली ज आपदी जोई। खूबज सरळताथी समजीशकाय तेढुंआ पुस्तक अमारा आत्मा माटे खूब ज कल्याणकारी निवड्युं । मळ्या। रात्रिभोजन, परस्त्रीगमन, बोळ अथाj, अनंतकाय भक्षण विषे जाणवा मळ्युं । नरकमां परमाधामी तरफथी मळती वेदनाओ जाणवा मळी । सात नरक विषे जाणवा मळ्युं । तेमनी स्थिति, आकार, आयुष्य वगेरे विशे जाणवा मळ्यु । स्वातीबेन चैतन्यकुमार शाह (गोरेगांव) नारकीर्नु आटलुं बधुं जाण्या पछी लागे छे, खरेवर ! संयम अंगिकार करवो जोई। आ भवमां डगले ने पगले महापाप थाय छे । दररोज प्रतिक्रमण सवार-सांज करवाथी १८ पाप स्थानको माथी छूटकारो मळे । आ पुस्तकनी अॅक्झाम आपता घणा अनुभव थया। नरकनी यातना विषे घj-घणुंजाणवा मळ्युं । नरकना चार द्वार जाणवा शासन प्रभावक गणिवर्य श्री विमलप्रभ विजयजी म.सा. वंदना तमारा तरफथी मोकलेल पुस्तक "हे प्रभुजी ! नहिं जाउं नरक मोझार” मळ्यु । तमोजे आ पुस्तकनुं संपादन करवा द्वारा अनेकोना जीवनमा पाप प्रत्येनो भय पैदा करावी शकशो.. टाईटलमा बंचे चित्र जोतां ज लोकोने दिलचश्पी पेदा थाय छे के शंहशे ? फरी तमारा आ अनुमोदनीय कार्यनी अनुमोदना करी विरमुं छु. 4 लि. राजरक्षित मुनि हO नहि उन भाजार ओपन बुक अक्झाम के सौजन्य एवम् इनाम दाता भीनमाल निबासी कोठारी माणेकचंदजी सरेमलजी हाल ग्रान्ट रौड, मुंबई भारतनगर (ग्रान्टरोड), मुंबई चातुर्मास में समस्त मुंबई लेवल की ओपनबुक अक्झाम के परीक्षार्थीओं के अभिप्रायों में से कुछ उपयोगी अभिप्राय यह पुस्तक में लिये है। Openbook Exam ) a (79) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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