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________________ ज्ञानादिगुणोपेत पू. गणिवर्य श्री विमलप्रभविजयजी म.सा. सादर अनुवंदना.... 6 आपना द्वारा संपादित "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" पुस्तक प्राप्त धनुं । आफ्नो आ प्रयास अनुमोदनीय छे । बस अज । लि. पूज्य श्रीनी आज्ञाथी विश्वचंद्रविजय.... - आ पुस्तक ममण शेठनी सजा नारकीना अनेक प्रकारीनी माहिती मळी | पहेली नरक रत्न प्रभा, बीजी नरक शर्करा प्रभा आम सात नरकनुं जाणवा मळ्युं । अनेक प्रकारनी कथा दृष्टांतसाक्षत जाणवा मळी । लि. प्रविणाबेन सुखलाल शेठ (भांडुप) आ पुस्तकनी परीक्षा आपी । तेमां अमोने नारकी पुस्तक वांचीने पाप नहिं करवा जोईओ अने थई गया होय तो प्रतिक्रमण करीने मिच्छामि दुक्कडम् (माफी) मांगी लेवी जोईओ, अवं जाणवा मळ्युं । गुरु पासे आलोचना लई लेवी जोईओ । लि. प्रफुल्ला अरविन्दकुमार वखारिया (बोरीवली-ईस्ट) I आ पुस्तकमां नरकमां के जवाब है अने करवाथी जवाय छे ? तेनुं आलेखन छे । साते नरको कई कई छे अने त्यां परमा धामीओ शुं दुःख आपे छे ? ते जाणवा मळे हे आपणे जरा सामान्य पण जूटुं बोलीओ तो कैटलुं पाप छे ? ते खबर पडे है। भगवान महावीर, श्रेणिक महाराजा भलभला पुण्यात्माओने पण नरकमां जयुं पडधुं छे तो आपणे विसातमां ? ज्यारथी आपणने खबर पडी त्यारथी आपणे चेती जवुं जोईओ पूर्वभवमां करेला कर्मो भोगना पडे छे ते जाणवा मळे छे। त्यां असंख्य वेदना सहन ती नथी ते बधुं जाणीने आपणे चेतीने रहे जोई अ । माटे आपणे धर्म करवो जोईओ । लि. प्रतीमाबेन विजयकुमार शाह (विरार) मैने जैसे यह पुस्तक नाम सुना तो विचार आया कि सचमुच हम जो दावानल जैसे संसार पडे है, वो सचमुच कितना भयानक है ? परंतु हम कितने स्वार्थी हैं के कभी यह नहीं छोडने का सोचते है । हे प्रभु! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (66) I आ मानव जन्म मने घणा पुण्यधी मळ्यो छे तेमां जैन कुळमां मारो जन्म थयो तेथी मने धर्म करवाथी घणुं ज्ञान मळ्युं अने नरकजी आ बुक वांचवाथी मार्ग रुवांटा खड़ां थई गया के माराथी आटलं बधुं पाप थयुं ? मारो आ जीव कई दुर्गतिमां ज १ कोने खबर, पण आ बुक वांचवाथी मारा जीवनमां घणा फेरफार आव्या है अने मारा बालकौमां पण सारा संस्कार आपी शकीश अने आ नरकनी बुक बतावी तैर्माांना नरकना फोटा बतादवाची तेमने पण खबर पढे तेथी तैओ धर्म करवा लागे T जेथी नरकमां न जवा माटे ते बने त्यां सुधी जीवनमां परिवर्तन लावी शके । रात्रे खावामां जे पाप छे । ते बंध करावीश आ अमूल्य मनुष्य जीव मळ्यो छे, तो धर्म करी जीवन सुधारी लेवाय । "है प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" अ पुस्तकमांथी मने घणुं ज्ञानमळ् छे । लि. हिना देवेन्द्र कोठारी (भावनगर) 6 "हे प्रभुजी ! नहिं जाऊँ नरक मोझार" मां नरकमां जीवोनी शी परिस्थिति छे ? तेनुं आपणी समक्ष दुःखद अने ना जोयेलुं, ना सांभळेलुं वर्णन छे । पापकर्मथी बचीओ, प्रभुथी डरीने जो कोइ पण काम करीभुं तो बटे बीजुं कांइ नहिं पण नरकनी ओछामां ओछी वेदना सहन करवी पडशे । रात्रिभोजन, परस्त्रीगमन, बोळ अथाणुं अने १८ पाप स्थानकमांधी बचीने बनी शके तेटली आत्माने शुद्ध अने निर्मळ बनाववी जीइओ तो ज आ पापमांथी बची जईशुं । हे, जीव हजु मोडुं थयुं नथी माटे के तुं जागी जा अने आत्माने उजवळ बनाव अने माटे हे जीव पापकर्मधी दूर रहे। प्रतिक्रमण करीने पापनुं प्रायश्वित कर । करेला पापनी गुरु पासै आलोचना कर अने प्रभु परमात्मा पास आत्मानी साक्षीओ पश्चाताप कर अ ज आ पुस्तकनो अने परीक्षानो मर्म छे । 9 आ अक्झाम आपी अमने घणुं गम्युं । आ उपरथी अमने घणुं घणुं जाणवा मधुं । जे कर्मों पाप अमे करतां हतां के अमाराथी थतां तां ते आ पुस्तक वांचवायी घणा मोटा भागे ओछा थशे आ पुस्तक वांच्या पछी अमने घणुं बधुं जाणवा मन्युं छे के करेला कर्मों अहीं ज भोगववाना छे अने जे न भोगवाय ते... नरकनुं पुस्तक बांची अमोने अवो अनुभव थयो के अमो जे अठार पापस्थानकमांथी पाप करतां पाठां हठी मी अने तेना प्रायश्वित द्वारा पापने खपावीओ छीओ अने नरकना चित्रो द्वारा अमारा अंतरने भीनुं करी दे छे। अने तेना द्वारा अमोने विचार
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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