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________________ नाम पृथ्वीना रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुका प्रभा नरक पृथ्वी के पिंड के आंतरा की गिनती का यंत्र पृथ्वीपिंड | उपर नीचे की शेष योजन | प्रतरगुणित | आतंरा की | आंतरा | सभी पृथ्वी के पृथ्वी के | नरकावासना | पृथ्वी । प्रतर के आंतरा योजना योजन का प्रमाण १८0000 २००० १७८000 ३९000 १३९000 | १२ ११५८३ १/३ योजन १३२००० २000 १३0000 ३३000 S७000 | १० 5000 योजन १२८000 2000 १२६000 २७000 ९९000 १२३७५ योजन १२0000 २000 ११८000 २१000 ९७000 १६१५५२/३ योजन ११८000 २000 ११६000 १५००० १०१000 २५२५० योजन ११६000 2000 ११४000 5000 १०५000 ५२५०० योजन १०८000 १०५000 | ३000 ३००० पंक प्रभा धूम प्रभा तम:प्रभा तमस्तमः सातो नरक पृथ्वी में नारकी के शरीर का उत्कृष्ट प्रमाण। विवेचन : रत्नप्रभा में ७१११ धनुष और ६ अंगुली शर्कराप्रभा में १५११ धनुष और १९ अंगुली वालुकाप्रभा में ३११ धनुष, पंकप्रभा में ९२११ धनुष, धुमप्रभा १९५ धनुष, तम:प्रभा में २५० धनुष, तमस्तमः प्रभा में ५00 धनुष उत्कृष्ट देहमान है।, २४ उंगली - १ हाथ, ४ हाथ - १ धनुष ___१००) कौन से कारणों से जीव नरक आयु बांधे? १. मिथ्यादृष्टि २. महारंभी ३. परिग्रही ४. तीव्र क्रोधी ५. शीलरहित ६. पाप की बुद्धिवाला ७. रौद्र परिणामी जीव नरकायु बाँधता है। १०१) सातो नरक पृथ्वी के नारकी का शरीर, विरहकाल, उपतात संख्या, च्यवन संख्या और गति आगति का यंत्र : शब्दार्थ : असंज्ञी (पर्याप्ता तिर्यंच), गर्भज, भूज, परिसर्प, पक्षी, सिंह, सर्प और स्त्री अनुक्रमे से छट्ठी नरक पृथ्वी तक ही उत्कृष्ट से उत्पन्न होते है। _ विवेचन : असंज्ञी अपर्याप्ता मनुष्य और तिर्यंच नरकायु बांधे नहि । असंज्ञी पर्याप्ता तिर्यंच अगर नरकायु बाँधे तो प्रथम नरक में जधन्य से १० हजार वर्ष और उत्कृष्ट से पल्योपम के असंख्याता भाग जितना आयुष्य प्राप्त करता है। है प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (64)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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