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________________ नहीं मिल सकते । जो जीव हिंसा आदि घोर पाप करते हैं वे उसकी सजा कहाँ भुगतेंगे? क्योंकि मनुष्यगति में उसका फल संभव नहीं है, क्योंकि यहाँ एक खून की सजा फांसी है तो दस खून की सजा भी वही फाँसी है। उसकी बाकी सजा भूगतने वह कहाँ जायेगा । और जो खून, मारपीट आदि करके भाग गये पकडा नहीं गये उसकी सजा ? घोर हिंसा का सजा कहाँ मिलेगी ? जो मन से हिंसा, पाप आदि का सेवन करता है, वे किस प्रकार से सजा प्राप्त करेंगे ? मनुष्यगति में जन्म लेने के बाद गत जन्मों के पापों का फल भूगतने से और फिर पाप कर्म चालु ही हो तो उसके पापों का फल बाकी रह जाता है। मनुष्यगति में कभी कभी सुख भी होता है। वैसे ही तीर्यंच जीवों को भी सुख रहता है। इसे प्रकार से पापी जीवों को उनके पाप की सजा सिर्फ नरकगति में ही शक्य है। ८५) वैमानिक देव अवधिज्ञान से नरक का कितना उत्कृष्ट क्षेत्र देख सकते है। सौधर्म और ईशान के देव प्रथम पृथ्वी तक देख सकते है । सनत्कुमार और माहेन्द देवलोक के देव दुसरी पृथ्वी तक, ब्रह्म और लांतक देव तीसरी पृथ्वी तक, महाशुक्र और सहस्त्रार देव लोक के देव चौथी नरक पृथ्वी और उपर के चार देवलोक आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोक के देव पाँचवी नरक पृथ्वी अवधिज्ञान से देखते है। विवेचन : सौधर्म और इशानेंद्र तथा सामानिक आदि उत्कृष्ट आयु वाले देव रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे के भाग तक देखते है। विशेष यह है कि उपर और उसे उपर के देवलोक के देव अवधिज्ञान से अति शुध्ध ज्यादा पर्याय वाली पृथ्वी को देखते है। जैसे कि आनत से प्राणत देव अति विशध्ध रीत से और अधिक पृथ्वी अवधिज्ञान बल से देखते है। ८६) ग्रैवेयक और अनुत्तर देवों का अवधिज्ञान : छ: ग्रैवेयक के देव छठ्ठी नरक तक, बाकी के ३ ग्रैवेयक के देव सातवी नरक पृथ्वी तक और अनुत्तर वैमानिक देव थोडे कम मात्रा में देखते है। वे तिर्छा दृष्टि से असंख्याता द्विप समुद्र देखते है । विवेचन : वैमानिक देव खुद के विमान की चुलिका ध्वजा तक उँचे देख सकते हैं। अनुत्तर विमान के देव कुछ कम १४ राजलोक प्रमाण उंचे त्रसनाडी को देखते हैं | अवधिज्ञान उत्पति समय । उँगली का असंख्याता भाग जधन्य से देख सकते है। ऐसा ज्ञान वैमानिक देवों को होता है। वे पूर्वभव (मनुष्य और तिर्यंच के भव) के अवधिज्ञान सहित जन्म लेते है। इसके बाद देव के संबंध में अवधिज्ञान उत्पन्न होते है। ८७) अवधिज्ञान काजधन्य विषय क्षेत्र तथा नारकी और देवों के अवधिज्ञान के आकार ? भवनपति और व्यंतर देव जधन्य से २५ योजन तक का देख सकते है। भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी १२ देवलोक, ग्रैवेयक और अनुत्तर देवों के अवधिज्ञान का आकार अनुक्रम से त्रापा का आकार। पाला का आकार, ढोल का आकार, झालर का आकार, मृदंग का आकार, पुष्प भरी हुई टोपली-चंगेरी का आकार, गलकंचूक का आकार, ऐसे अलग अलग आकार है। तिर्यंच और मनुष्य के विषय में अवधिज्ञान अलग अलग प्रकार के संस्थान से संस्थित है। ऐसा कहा है। ८८) नारकी अवधिज्ञान से कौनसी दिशा तरफ ज्यादा देखती है। भवनपति और व्यंतर को उपर की तरफ का अवधिज्ञान ज्यादा होता है। वैमानिक देवों का नीचे का अवधिज्ञान ज्यादा होता है । नारकी और ज्योतिषी को तिर्छ अवधिज्ञान ज्यादा होता है। मनुष्य और तिर्यंच को अनेक प्रकार से अवधिज्ञान होता है। भवनपति और व्यंतर का अवधिज्ञान उपर की बाजू का ज्यादा होता है तिर्छा तथा नीचे का कम होता है । वैमानिक को नीचे का अवधिज्ञान ज्यादा और तीळ तथा उपर का कम होता है। नारकी और ज्योतिषी को तिर्छा अवधिज्ञान ज्यादा होता है । तथा उँचे का और नीचे का थोडा कम होता है। मनुष्य और तिर्यंच को अनेक प्रकार से अवधिज्ञान होता है। अर्थात किसी को उँचा, किसीको नीचे का, किसी को तीरछा होता है। है प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (58)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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