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काण्ट का दर्शन समीक्षावादी है। समीक्षावाद का मोह न अनुभववाद से है, न बुद्धिवाद से। उनका लक्ष्य इन दोनों से परे एक अनुभवातीत (Transcendental) दर्शन की स्थापना करना है। इसीलिए एफ. थिली ने लिखा है कि "To limits Hume's skepticism on the one hand, and the old dogmatism on the other, and to refute and destroy materialism, fatalism and superstition.. He himself had come from the rationalistic school of wolf, but had also been attracted to English impiricism and Roussean and Hume had aroused him from his dogmatic slumbers." ह्यूम और रूसो के प्रभाव में अन्तर बतलाते हुए रसेल ने लिखा है कि "Hume for Kant, was an adversary to be refuted but the influence of Rousseau was more profound." 100 दरअसल समीक्षावाद दर्शन होने की अपेक्षा दर्शन की पद्धति है, एक पूर्ण दर्शन की अपेक्षा यह दर्शन की भूमिका है। इनके समीक्षावाद को समन्वयवादी दर्शन भी कहा जाता है। दोनों में मात्र सामंजस्य स्थापित ही नहीं किया बल्कि दोनों को यथास्थान महत्त्व प्रदान किया है।
काण्ट के पहले कई विचाराधाराएँ बह रही थीं। उनमें मुख्य रूप से दो विचारधाराओं के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। जहां बुद्धिवादियों ने बुद्धि को ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन माना, वहां अनुभववादियों ने अनभव को ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र साधन माना है। बुद्धिवाद के अनुसार ज्ञान मनुष्य की विशेषता है। ज्ञान बद्धि से प्राप्त होता है। ऐसा ज्ञान अनुभव से नहीं मिल सकता है। हमारा अनुभव वर्तमान का होता है और वर्तमान अनुभव कुछ का ही हो सकता है। अतः बुद्धिवादियों की दृष्टि में अनुभव ज्ञान-प्राप्ति का साधन नहीं हो सकता है। इसके विपरीत अनुभववादियों का कहना है कि वस्तुओं के अस्तितव का ज्ञान वास्तविक ज्ञान है। ऐसा ज्ञान बुद्धि से नहीं, अनुभव से प्राप्त होता है। काण्ट ने दोनों मत की समीक्षा अथवा समन्वय करने की चेष्टा की है। उनका कहना है कि यथार्थ ज्ञान बुद्धि और अनुभव का सम्मिलित परिणाम है। बुद्धि के बिना अनुभव अन्धा है और अनुभव के बिना बुद्धि खाली या रिक्त है। (Percepts without concepts are blind and concepts without percepts are empty-that is to say, concepts have no meaning apart from the perceptual elements which they unify.) ज्ञान की सामग्री अनुभव से और उसका आकार बुद्धि से मिलता है। आकार के बिना सामग्रियां अव्यवस्थित और अस्त-व्यस्त हैं। बुद्धि के आकार उन्हें व्यवस्थित करते हैं। कठोपनिषद् में भी शरीर को रथ, बाह्य इन्द्रियों को घोड़ा, मन को लगाम तथा बुद्धि को सारथी माना है अर्थात् रथ की दिशा और दशा पर बुद्धि ही नियंत्रण रखती है।
बुद्धिवादियों की तरह अनुभववादियों ने भी बुद्धि की सत्ता को माना है, पर गौण रूप में। बुद्धिवादियों के अनुसार बुद्धि सक्रिय है। उसमें जन्मजात
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