SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ग) दृष्टिकोण में अन्तर-दर्शन का दृष्टिकोण सैद्धान्तिक है परन्तु धर्म का दृष्टिकोण व्यावहारिक है। (घ) पद्धति में अन्तर-दर्शन की पद्धति बौद्धिक है किन्तु धर्म, विश्वास, श्रद्धा एवं अन्तःकरण अथवा अन्तर्नुभूति की सहायता लेता है। हॉब्स ने भी माना है कि दर्शन एक बौद्धिक मीमांसा है।2।। (ङ) प्रवृत्ति में अन्तर-दर्शन बौद्धिक है परन्तु धर्म रागात्मक है। (च) उपयोगिता में फर्क-धर्म मनुष्य की बौद्धिक, भावात्मक एवं क्रियात्मक सभी तरह की जरूरतों की पूर्ति करना चाहता है। दर्शन मनुष्य के मात्र बौद्धिक पक्षों को संतुष्ट कर पाता है। (छ) धर्म के विस्तार में अन्तर दर्शन का क्षेत्र धर्म की तुलना में अधिक बड़ा है। यादि दोनों में व्यापक और व्याप्य का अन्तर है। (ज) आराध्य और आराधक के सम्बन्ध को लेकर अन्तर-धर्म में आराधक और आराध्य के बीच अट्ट सम्बन्ध रहता है किन्तु इस प्रकार का सम्बन्ध दर्शन में नहीं रहता है। दर्शन और धर्म में वास्तविक सम्बन्ध-विश्व इतिहास के अधिकांश धर्म एवं दर्शन के बीच यद्ध से रक्त रंजित दिख पड़ते हैं। किन्तु भारत में दर्शन एवं धर्म के बीच विरोध का सम्बन्ध नहीं है। यहां दोनों के बीच परस्पर पूरक का सम्बन्ध है। दोनों में अविच्छेद सम्बन्धों को प्राचीन, मध्य एवं आधुनिक दार्शनिकों ने भी स्वीकार किया है। दरअसल धर्म का दार्शनिक विवेचन होना धर्म की प्रगति के लिए आवश्यक है। दार्शनिक विवेचन के अभाव में धार्मिक प्रगति रुक जाती है और उसका अन्त रूढ़िवाद में होता है। अतः धर्म के लिए दार्शनिक समीक्षा जरूरी है। कुछ लोग धर्म को दर्शन से पूर्ण स्वतंत्र रखने के पक्ष में हैं। इनके अनुसार दार्शनिक समीक्षा धर्म के लिए घातक है। किन्तु गम्भीरता से विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि यह धारणा निराधार है। यहां बेकन का कथन उपयुक्त जंचता है कि "It is true that a little philosophy inclineth man's mind to Atheism, but depth in philosophy bringeth man's mind to religions." धर्म दर्शन की मदद करता है। जिस प्रकार विज्ञान दर्शन को विषय-वस्तु देता है, उसी प्रकार धर्म भी दर्शन के लिए उपादान उपस्थित करता है। धार्मिक उपादान धार्मिक विवेचन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। धर्म दार्शनिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप देता है। दर्शन परम सत्य का ज्ञान प्राप्त करा सकता है। किन्तु इस ज्ञान को जीवन में कार्यान्वित करने का श्रेय धर्म को ही प्राप्त है। Bahm महोदय ने ठीक ही कहा है कि "It philosophy is thought and Religion is action then one's religion is one's philosophy inaction." 49
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy