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4. विज्ञान केवल अनुभवगम्य पदार्थों का अध्ययन करता है, किन्तु दर्शनशास्त्र दृश्य-जगत् के परे भी जाने का प्रयत्न करता है । 5. विज्ञान का दृष्टिकोण वस्तुवादी है, परन्तु दर्शनशास्त्र अमूर्त्त विषयों का मूल्यांकन भी करता है। डॉ. राधाकृष्णन् का कहना ठीक ही है कि "सभी विज्ञान कुछ वस्तुओं को मानकर चलते है लेकिन दर्शनशास्त्र बिना छानबीन के कुछ नहीं मानता है। जिसकी परीक्षा नहीं हो पायी है, उसकी परीक्षा भी दर्शनशास्त्र के लिए आवश्यक हो जाती है।"
6. विज्ञान प्रयोगात्मक है, परन्तु दर्शनशास्त्र विचारात्मक है। 7. विज्ञान पदार्थों की व्याख्या में केवल बौद्धिक पक्ष को सन्तुष्ट करता है, पर दर्शनशास्त्र सम्पूर्ण मनस को सन्तुष्ट करने की कोशिश करता है। विज्ञान को मात्र सत्यम् से वास्ता है पर दर्शनशास्त्र का सम्बन्ध सत्यम् शिवम् और सुन्दरम् तीनों से है। प्लेटो आदि के दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने पर यह और स्पष्ट हो जाता है।
(ग) दोनों के बीच वास्तविक सम्बन्ध
वास्तव में दर्शन एवं विज्ञान में कोई मौलिक विरोध नहीं है। हवाइटहेड ठीक ही बतलाया है कि "विज्ञान और दर्शन परस्पर एक-दूसरे की आलोचना करता है और एक-दूसरे को काल्पनिक सामग्री प्रदान करता है।" कुछ चिन्तकों ने तो विज्ञान को दर्शन की सन्तान बतलाया है। (The sciences are the children of the old mother philosophy.) प्रारम्भ में सभी विज्ञान दर्शन के ही अन्तर्गत थे। बाद में वे दर्शन से धीरे-धीरे पृथक् होते गये और अपना स्वतंत्र क्षेत्र बनाते गये किन्तु वास्तव में दोनों बिल्कुल पृथक नहीं हैं बल्कि दोनों के बीच परस्पर पूरक का सम्बन्ध है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र एवं मार्क्स के पूंजी आदि महत्त्वपूर्ण रचनाओं का अध्ययन करने से इस बात की सम्पुष्टि हो जाती है। मार्क्स ने दर्शन की सोच को वैज्ञानिक सोच की तरह ही दर्शाया है। इनके गुरू हिगेल ने भी वैज्ञानिक सोच को दर्शन के लिए आवश्यक बतलाया है। ईमाइल दुर्खीम का जन्म 1864 ई. में फ्रांस के अन्तर्गत हुआ था । इन्होंने वैज्ञानिक नैतिकता को समाज की एकता का आधार प्रस्तावित किया है। नैतिकता ऐसा बड़ा दर्शन है, जो धर्म का स्थान ले सकता है, यह विज्ञान द्वारा संभव हो सकता है। इनका कहना है कि विज्ञान ने लोगों की आस्थाओं, विश्वासों और परम्पराओं के प्रति एक तार्किक प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है। ईश्वर क्या है? कहां है? कैसा है? इन सब प्रश्नों का उत्तर या प्रमाण धर्म के पास नहीं है। धर्म का विशाल महल, उसके गगनचुम्बी कंगुरे विश्वास की भूमि पर खड़े हैं धर्म और नैतिकता का अध्ययन दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत है, इसलिए जो बातें धर्म और नैतिकता के लिए की गई हैं, वे दर्शन पर भी लागू होंगी।
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