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करती है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा सकता है कि शब्द से कुछ ऐसे लौकिक एवं अलौकिक विषयों का ज्ञान होता है, जिनका ज्ञान प्रत्यक्ष तथा अनुमान द्वारा संभव नहीं है अतः बौद्धों एवं वैशेषिकों का उपर्युक्त आक्षेप निराधार है।
प्रमाणों की विभिन्नता प्रमात्मक फल की विभिन्नता पर आधारित है। इस वस्तुस्थिति के अनुसार यदि यह सिद्ध कर दिया जाए कि शब्दबोधात्मक प्रमा अनामित्यात्मक प्रमा नहीं है, किन्तु एक प्रकार स्वतंत्र प्रमा है तो उसे अनुमिति भिन्न शाब्दबोधात्मक प्रमा के कारण रूप में शब्द को भी स्वतंत्र प्रमाण मानना ही होगा। साथ ही जब अनुमिति और शाब्द- बोध इन दोनों प्रमितियों के लिए आपेक्षित होने वाले साधनों में महान पार्थक्य पाया जाता है, तब अनुमिति और शाब्दबोध दोनों प्रथाओं को एक कैसे कहा जा सकता है? और जब दोनों प्रमितियां भिन्न होंगी तो दोनों के लिए अपेक्षित होने वाले दो प्रमाण एक कैसे कहे जा सकते हैं? इसलिए शब्द को अनुमान से अतिरिक्त एक स्वतंत्र प्रमाण मानना ही होगा।
वैशेषिकों का कहना है कि जिस प्रकार अनुमान में ज्ञात लिंग (धुआं) के आधार पर अज्ञात लिंगी (आग) का ज्ञान प्राप्त करते हैं, ठीक उसी प्रकार शब्द प्रमाण में भी प्रत्यक्ष शब्द (वाचक) के माध्यम से अप्रत्यक्ष वस्तु ( वाच्य ) का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यहाँ शब्द या वाचक लिंग है और वाच्य लिंगी है। इसलिए जिस प्रकार अनुमान के लिए लिंग (हेतु) और लिंगी (साध्य) के बीच व्याप्ति सम्बन्ध आवश्यक है, उसी प्रकार शब्द प्रमाण के लिए भी वाचक और वाच्य के बीच व्याप्ति सम्बन्ध का होना आवश्यक है। इस प्रकार वैशेषिकों के अनुसार शब्द - ज्ञान और अनुमानजन्य ज्ञान प्राप्त करने की विधि समान है । इसलिए शब्द को अनुमान में सरलतापूर्वक अन्तर्भूत किया जा सकता है।
नैयायिकों का कहना है कि वैशेषिकमत व्याप्ति के गलत अर्थ पर आश्रित है। अनुमान में लिंग एवं लिंगी के मध्य स्थित व्याप्ति-सम्बन्ध वास्तविक अथवा स्वाभाविक सहचार का सम्बन्ध है । उदाहरण के लिए धुआं एवं अग्नि के बीच यह सम्बन्ध पाया जाता है। जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है । परन्तु शाब्दिक ज्ञान में शब्द (वाचक) तथा अर्थ (उस शब्द से सूचित विषय) के बीच स्वाभाविक सहयोग का सम्बन्ध नहीं पाया जाता है। जहाँ शब्द रहते हैं, वहाँ इनसे सूचित पदार्थों का रहना आवश्यक नहीं है। यदि ऐसी बात होती तो पुस्तकों में हाथी शब्द के रहने पर सचमुच हाथी वहाँ भी विद्यमान रहता। इसी तरह मिठाई शब्द के उच्चारण मात्र से ही मुख में मिठाई आ जाती है । परन्तु ऐसा नहीं होता है इससे सिद्ध होता है कि शब्द और इससे सूचित पदार्थ के बीच स्वाभाविक सहचार सम्बन्ध नहीं रहता है। अतः शब्द - ज्ञान में व्याप्ति का अभाव रहता है किन्तु अनुमिति के लिए व्याप्ति का होना अनिवार्य है ।
अनुमान में लिंग और लिंगी के बीच व्याप्ति - सम्बन्ध रहने के कारण इनमें अन्वय एवं व्यतिरेक दोनों प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। दूसरे शब्दों में एक
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