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में कथन अदृष्टार्थ शब्द, इसी प्रकार सन्त, महात्माओं एवं चिन्तकों के आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक, मोक्ष, पुनर्जन्म आदि के विषय में दिये गये कथन अदृष्टार्थ शब्द कहे जाते हैं। अणु, परमाणु, आत्मा, परमात्मा इत्यादि का प्रत्यक्ष नहीं हो पाता है। फिर भी आप्त वचन होने के कारण इनकी सत्यता में हमारा विश्वास रहता है। इसी विश्वास को आधार बतलाते हुए श्रीकृष्ण भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि "सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्ष यिष्यामि मा शुचः।। 14
लौकिक और वैदिक शब्द-जैसा कि पहले भी बतलाया जा चुका है कि शब्दों का यह वर्गीकरण इनकी उत्पत्ति के आधार पर किया गया है। अब प्रश्न उठता है कि लौकिक और वैदिक शब्द क्या है? इस संसार के लोगों के कथन लौकिक शब्द कहे जाते हैं एवं वेदों, अन्य धार्मिक ग्रन्थों एवं ईश्वर के कथन वैदिक शब्द कहे जाते हैं। इसीलिए तर्कसंग्रह में बतलाया गया है-वाक्यं द्विविधम् वैदिकं लौकिकं च। वैदिकं ईश्वरोक्तत्वात् सर्वमेव प्रमाण। लौकिकत्वाप्तोक्तं प्रमाणम् । अर्थात् वाक्य दो प्रकार के हैं-वैदिक और लौकिक। ईश्वरोक्त होने के कारण वैदिक वाक्य तो सभी प्रमाण हैं। किन्तु लौकिक वाक्य वे ही प्रमाण होते हैं जो आप्तोक्त होते हैं। वाक्यार्थ ज्ञान ही कहलाता है शब्द ज्ञान और उसके प्रति करण होता है शब्द। यानी लौकिक शब्द सांसारिक लोगों के कथन होने के कारण सत्य और असत्य दोनों हो सकते हैं। केवल आप्त पुरूषों के कथन ही सत्य होते हैं। किन्तु साधारण मनुष्य के कथन संदेहयुक्त होते हैं। ये सत्य भी हो सकते हैं और असत्य भी। उदाहरण के लिए अखबार की कुछ खबरें सत्य और कुछ असत्य होती हैं।
चार्वाक को छोड़कर सभी भारतीय विचारक लौकिक शब्द को प्रमाण नहीं मानते हैं। चूंकि प्रायः ये संदेहात्मक रहते हैं अतः इनके द्वारा प्राप्त ज्ञान प्रमाण की कोटि में नहीं रखा जा सकता है। वेदान्त लौकिक शब्द को प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करता है।
वैदिक शब्द चूंकि वेदों, अन्य धार्मिक ग्रन्थों एवं ईश्वर के कथन होने के कारण सदैव सत्य माने जाते हैं। वैदिक वाक्य तीन प्रकार के हैं
(क) आदेश या आज्ञा सूचक वाक्य (विधि वाक्य) जैसे जो स्वर्ग पाने की इच्छा रखे वह अग्निहोत्र अथवा होम करे।
(ख) अर्थवाद-इसके द्वारा कर्मों की स्तुति, निन्दा, प्रकृति एवं पुराकल्प की अभिव्यक्ति होती है। उदाहरण के लिए पापी नरकगामी होता है या अमुक यज्ञ करने से देवों की विजय हुई है।
(ग) अनुवाद-इसमें वेदविहित वाक्यों की पुनरावृत्ति अर्थानुवाद और शब्दानुवाद द्वारा होती है।