________________
(4) आप्तकथन का वास्तविक अर्थ लोगों की समझ में आना जरूरी है।
(5) आप्त कथन को दूसरों के सम्मुख रखने के पीछे लोककल्याण की भावना रहती है।
(6) और अन्त में शाब्दिक ज्ञान यथार्थ रूप में प्राप्त हो जाता है।
शब्दों का वर्गीकरण-शब्द कान का विषय है। ये कान के द्वारा ही सुने जाते हैं। शब्द के दो प्रकार हैं-ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक | ध्वन्यात्मक शब्द उसे कहते हैं जिसमें केवल ध्वनि सुनाई पड़ती है। इसमें अक्षर स्फुटित नहीं होता है। इसमें अर्थ का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता, उदाहरण के लिए किसी वाद्ययन्त्र का अस्पष्ट शब्द। वर्णनात्मक शब्द वह है, जिसमें कंठ, ताल आदि के संयोग से स्वर व्यंजनों का उच्चारण होता है। जैसे किसी व्यक्ति की आवाज। वर्णात्मक शब्द भी दो प्रकार के होते हैं-(क) निरर्थक एवं (ख) सार्थक। निरर्थक शब्द अर्थहीन होता है और इससे कोई निश्चित अर्थ नहीं निकलता है। उदाहरण के लिए उम, बुम, एह आदि। सार्थक शब्दों से कुछ विशेष अर्थ निकलते हैं। उदाहरणार्थ-घोड़ा, बन्दर आदि। शब्दों में अर्थ व्यक्त करने की शक्ति को संकेत कहा जाता है। संकेत भी दो प्रकार के हैं-आजानिक और आधुनिक संकेत। आजानिक संकेत ईश्वर प्रदत्त है।
The Naiyîyikas refuse to accept this view and hold that the utmost that could be said about pada 'akti is that it is the will of God to the effect that a particular word should convey a particular sense. This is on the assumption that speechis not a human product but made by God for the benefit of humanity.
आजानिक संकेत
यह संकेत ईश्वरप्रदत है। सृष्टि के आदि काल में ही ईश्वर ने शब्दों में आजानिक संकेत रख छोड़ा है। इस संकेत को शक्ति के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। मीमांसकों के अनुसार शाब्दबोध का जनक जो पदार्थस्मरण, तदनुकूल जो पद एवं पदार्थ का सम्बन्ध ही शक्ति है। प्रकृत लक्षण के लक्ष्यभूत शक्ति को मीमांसक द्रव्य, गुण आदि की तरह एक स्वतंत्र पदार्थ मानते हैं एवं उसका लक्षण अर्थ स्मृत्यनुकूल संबंधत्व बतलाते हैं। यद्यपि यह मीमांसकाभिमत शक्ति लक्षण न्यायमत सिद्ध शक्ति में भी समन्वित हो जाता है क्योंकि नैयायिक भी पद-शक्ति को पदार्थ का स्मारक संबंध मानते ही हैं, तथापि लक्षणा को भी वृत्यन्तर मानने वाले नैयायिकों के मत में मीमांसकमत सिद्ध उक्त लक्षण को शक्ति का लक्षण नहीं माना जा सकता है। नैयायिकों की दृष्टि में ईश्वरेच्छीय (ईश्वर की इच्छा) विशेषता ही शक्ति है। यहाँ एक प्रश्न यह भी उठाया जा सकता है कि भगवान के ज्ञान एवं यज्ञ को शक्ति न मानकर उनकी उक्त प्रकार इच्छा को ही शक्ति क्यों माना जा रहा है? इसके उत्तर में दीपिका के व्याख्याता नीलकंठ ने कहा है कि आधुनिक संकेतात्मक परिभाषा की इच्छारूपता
49