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नजर आते हैं। इनका संगीत बिहार में ही नहीं अन्यत्र भी अभी तक लोग गाते आ रहे हैं और आगे भी गाने की उम्मीदें हैं। इनकी लोकप्रियता के कारण बंगाली बन्धु इन्हें बंगाली कवि भी कहने लगे हैं।
आधुनिक इतिहास में वीर कुंवरसिंह और गुरु गोविन्दसिंह को कौन नहीं जानता है। पटना साहेब और कुंवरसिंह का स्मारक आज भी भारतीयों को सबक देही रहा है। तभी तो एक कवि कह बैठा कि देश का बेटा बनो कुंवरसिंह और बेटियां लक्ष्मीबाई। देश के प्रत्येक बच्चे को अभी भी कुंवरसिंह बनने की सीख दी जा रही है। बेगूसराय का श्री वाल्मीकि बाबू स्व. रामचरित्र सिंह, कॉ. चन्द्रशेखर हम बिहारवासियों को ईमानदारी और नीतिसम्मत राजनीति की प्रेरणा दे ही रहे हैं। स्व. लंगटसिंह, स्व. रामनन्दन मिश्र एवं ल. नारायण मिश्र आज भी श्रद्धापूर्वक याद किये जाते हैं इन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अहम् भूमका अदा की है। इनसे भारतीय नागरिकों को प्रेरणा अवश्य लेना चाहिए। ये सब बिहारी हैं, भारत के विकास में इनकी अहम् भूमिका है। हमें स्मरण रखना चाहिए कि भारत की दुर्दशा क्यों हुई, स्पष्ट है कि मध्य युग में बौद्ध धर्म भारत से लुप्तप्रायः हो चुका है। बौद्ध प्रतिपक्षियों के अभाव में हिन्दू दार्शनिक आपस में ही श्रुतियों के उद्धरण व नई व्याख्याएं देते हुए झगड़ते रहें इसके कारण तर्कानुप्रमाणित तेज घटने लगा और वात्स्यायन उद्योतकर और वाचस्पति मिश्र के द्वारा स्थापित तेज लुप्तप्राय ही हो गया। डॉ. देवराज ने ठीक ही लिखा है कि मध्ययुग में उनके चिन्तन में अब वह तर्कानुप्राणित तेज नहीं रह गया था, जो वात्स्यायन, उद्योतकर और वाचस्पति मिश्र के समय के नैयायिकों तथा वेदान्तियों में था । विशिष्टाद्वैत भी दार्शनिक दृष्टि से उतना मौलिक व पुष्ट दर्शन नहीं है, जैसे कि न्याय, वैशेषिक, सांख्य और वेदान्त (अद्वैत) के सम्प्रदाय।
यदि उस शुद्रता, स्वार्थपरता, देशद्रोही आदि कुप्रवृत्तियों को मिटा दें और महापुरुषों के द्वारा बताये गये रास्ते को अपनायें और शास्त्र सम्मत आचरण रखें तो निश्चय ही भारत फिर ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेगा । इसलिए मैं अपने बिहारी बन्धुओं से निवेदन करता हूँ कि अपने गौरवमय इतिहास को याद करें और अपने से अतिरिक्त राज्यों के नागरिकों को भी इस ओर अग्रसर होने में मदद पहुंचाएं ताकि विश्व में भारत का मस्तक ऊँचा हो अथवा मुकुट के रूप में उभर सके। आज बिहार में नौकरी के लिए शिक्षकों को और पढ़ने के लिए छात्र एवं छात्राओं को अनुदान देना पड़ता है, उन्हें याद रखना चाहिए कि बिहार की दिशा और दशा क्या है? सेवा और कल्याण की भावना एवं क्रिया से दशा और दिशा सुधर सकती है। दरभंगा महाराज आदि दानदाताओं से प्रेरणा लेना आवश्यक है। डॉ. (श्रीमती) पूनम चौधरी ने ठीक ही बतलाया है कि, " A rose worthy point of the Maharajas (Darbhanga Maharaja) and states was to make education a tool of social service and community welfare."
यदि दरभंगा महाराज की तरह आज भी समृद्धशाली एवं प्रबुद्ध नागरिक संस्था का निर्माण करें तो बिहार के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी इसका प्रभाव
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