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________________ अष्ट पाहुड areate स्वामी विरचित o आचार्य कुन्दकुन्द HOG Dool Doo|| DOGIN TOMJANA WANAMANAS SARAMANAND में तो शील प्रधान कहा ही है। जितने सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग के अंग हैं वे शील के परिवार हैं-ऐसा पहिले कह ही आये हैं।।२५।। आगे कहते है कि 'जो कुमत से मूढ़ हो गये हैं वे विषयों में आसक्त हैं, कुशीली हैं सो संसार में भ्रमण करते हैं':पुरिसेण वि सहियाए कुसमयमूढेहिं विसयलोलेहिं। संसारे भमिदव्वं अरयघरट्टं च भूदेहिं।। २६।। दुर्मतविमूढ़ व विषयलोलुप, घूमते संसार में। अरु संग उनके अन्य जन भी, घूमें अरहट घड़ी सम।।२६ ।। अर्थ 崇崇崇崇先崇崇樂樂業先業事業%崇勇崇崇勇兼崇勇攀%崇勇 崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂 जो 'कुसमय' अर्थात् कुमतों से मूढ़ हैं-मोही अज्ञानी हैं तथा विषयों में लोल हैं-लोलुपी हैं, आसक्त हैं वे संसार में भ्रमते हैं। कैसे होते हुए भ्रमते हैं-जैसे अरहट में घड़ी भ्रमण करती है वैसे हुये भ्रमण करते हैं तथा उनके साथ अन्य पुरुषों का भी संसार में दुःख सहित भ्रमण होता है। भावार्थ कुमती विषयासक्त मिथ्याद ष्टि स्वयं तो विषयों को भला मानकर उनका सेवन करते हैं, कई कुमती ऐसे भी हैं जो इस प्रकार कहते हैं कि 'सुन्दर विषय सेवन करने से ब्रह्म प्रसन्न होता है और यह परमेश्वर की बड़ी भक्ति है-ऐसा कहकर वे उनका अत्यन्त आसक्त होकर सेवन करते हैं तथा ऐसा ही उपदेश दूसरों को देकर विषयों में लगाते हैं। वे आप तो अरहट की घड़ी के समान संसार में भ्रमते ही हैं और वहाँ अनेक प्रकार के दुःख भोगते हैं परन्तु अन्य पुरुषों को भी वहाँ लगाकर भ्रमण कराते हैं। क्योंकि यह विषयों का सेवन दुःख के लिए है और दुःख ही का कारण है-ऐसा जानकर कुमतियों का प्रसंग न करना तथा विषयासक्तपना छोड़ना, इससे सुशीलपना होता है।।२६ ।। 禁禁禁禁禁禁禁冬戀戀戀戀事業業助業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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